No-Confidence Motion: विपक्ष राज्यसभा के सभापति जगदीप धनखड़ के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाने की तैयारी में है। कांग्रेस के नेतृत्व में विपक्ष ने मंगलवार को जगदीप धनखड़ के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव पेश करने के लिए उच्च सदन को नोटिस दिया। इसमें सभापति पर ‘पक्षपातपूर्ण तरीके से काम करने’ का आरोप लगाया गया है। नोटिस में विपक्षी समूह के 60 से ज्यादा सांसदों के हस्ताक्षर हैं। भाजपा ने नोटिस का विरोध जताया है। वहीं, विपक्षी कांग्रेस ने कहा कि सभापति धनखड़ ने आसन की गरिमा को ठेस पहुंचाई है।
भारतीय संविधान के अनुसार, राष्ट्रपति के बाद उपराष्ट्रपति दूसरा सबसे बड़ा संवैधानिक पद है। भारतीय संविधान के अनुच्छेद 63 में उपराष्ट्रपति के कार्यकाल का उल्लेख मिलता है। उपराष्ट्रपति का कार्यकाल 5 वर्ष के लिए रहता है। हालांकि, कार्यकाल खत्म होने के बावजूद अगला उपराष्ट्रपति बनने तक वह पद पर बने रह सकते हैं। संविधान में प्रावधान है कि राज्यसभा के सभापति के रूप में उपराष्ट्रपति कार्य करेंगे। उपराष्ट्रपति राष्ट्रपति को अपना इस्तीफा सौंपकर पद से इस्तीफा दे सकते हैं। अनुच्छेद 64 कहता है कि उपराष्ट्रपति राज्यसभा के पदेन अध्यक्ष होंगे और वह किसी अन्य लाभ के पद पर नहीं होंगे। वहीं, अनुच्छेद 65 के अनुसार, राष्ट्रपति के पद पर मृत्यु, त्यागपत्र या निष्कासन या अन्य किसी कारण से होने वाली आकस्मिक रिक्ति के दौरान राष्ट्रपति के रूप में कार्य करेंगे।
5 वर्ष के कार्यकाल से पहले ही पद से हटने की केवल 2 ही स्थितियां हो सकती हैं। पहली स्थिति तब होगी जब उपराष्ट्रपति राष्ट्रपति को खुद अपना त्यागपत्र दे दें और दूसरी स्थिति तब होगी जब उन्हें पद से हटा दिया जाये। जिस प्रक्रिया के तहत उपराष्ट्रपति पद से हटा दिया जाता है उसे अविश्वास प्रस्ताव कहते हैं।
संविधान के अनुच्छेद 67बी में उपराष्ट्रपति को पद से हटाए जाने की प्रक्रिया का उल्लेख है। उपराष्ट्रपति पद से हटाने के लिए अविश्वास प्रस्ताव लाया जाता है। संसद में प्रस्ताव लाने से पहले कम से कम 14 दिन पहले सदन को सूचित करना होता है। उपराष्ट्रपति को हटाने के लिए प्रस्ताव पेश करने के लिए न्यूनतम आवश्यक संख्या 50 है। वहीं अभी 60 विपक्षी सांसदों ने नोटिस पर हस्ताक्षर किए हैं।
प्रक्रिया के अनुसार, अविश्वास प्रस्ताव को राज्यसभा द्वारा पारित किया जाना चाहिए और उन्हें हटाने के लिए लोकसभा द्वारा उस पर सहमति होनी चाहिए। इसलिए, यदि राज्यसभा के सभापति धनखड़ के खिलाफ प्रस्ताव ऊपरी सदन में पारित हो जाता है, तो सफल होने के लिए इसे लोकसभा में साधारण बहुमत से पारित होना चाहिए। फिर इसे निचले सदन में भी इसी बहुमत से पारित होना चाहिए। परंतु ये संभव होता नज़र नहीं आ रहा चूंकि विपक्ष के पास स्पष्ट बहुमत नहीं है, इसलिए धनखड़ को हटाया जाना मुश्किल है।
उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ और विपक्षी दलों के नेताओं के बीच सोमवार को जोरदार बहस हुई। इस बहस के बाद विपक्ष ने धनखड़ को उनके कार्यकाल से हटाने के लिए एक अविश्वास प्रस्ताव लाने फैसला किया। मीडिया सूत्रों के मुताबिक, कांग्रेस, राजद, सीपीआई, सीपीआई-एम, जेएमएम, आप, डीएमके, टीएमसी समेत 60 से ज्यादा विपक्षी सांसदों ने नोटिस पर हस्ताक्षर करके नोटिस को राज्यसभा महासचिव पीसी मोदी को सौंपा दिया। विपक्ष की नाराज़गी के पीछे उपराष्ट्रपति द्वारा सत्ता पक्ष के सदस्यों को कांग्रेस-सोरोस संबंध का मुद्दा उठाने की अनुमति देना बताया जा रहा है।
कांग्रेस सांसद जयराम रमेश (Jairam Ramesh) ने मंगलवार को कहा कि पिछले 72 साल में यह पहली बार है जब विपक्षी दल राज्यसभा के सभापति के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव ला रहे हैं। यह दिखाता है कि स्थिति कितनी खराब हो चुकी है। जिस तरीके से राज्यसभा सभापति ने सदन को चलाया, उसने हमें यह अविश्वास प्रस्ताव लाने के लिए मजबूर किया। सभी विपक्षी दलों ने इस प्रस्ताव पर हस्ताक्षर किए हैं। इसमें कहा गया है कि वह पक्षपाती हैं।
भाजपा समेत एनडीए के दलों ने इस अविश्वास प्रस्ताव का विरोध किया है। इस मामले पर केंद्रीय संसदीय कार्य मंत्री किरेन रिजिजू (Kiren Rijiju) ने कहा, ‘विपक्ष ने आसन की गरिमा का अनादर किया है, चाहे वह राज्यसभा हो या लोकसभा। कांग्रेस पार्टी और उनके गठबंधन ने लगातार आसन के निर्देशों का पालन न करके गलत व्यवहार किया है। उपाध्यक्ष जगदीप धनखड़ एक साधारण पृष्ठभूमि से आते हैं। वह संसद के अंदर और बाहर हमेशा किसानों और लोगों के कल्याण की बात करते हैं।