मंदिर – यंत्रोद्धारक हनुमान मंदिर: प्रभु श्रीराम के अनन्य भक्त रुद्रावतार हनुमान जी को समर्पित यह मंदिर भारत के कर्नाटक प्रांत के बेल्लारी जिले के हम्पी शहर में स्थित है।

मंदिर – यंत्रोद्धारक हनुमान मंदिर: प्रभु श्रीराम के अनन्य भक्त रुद्रावतार हनुमान जी को समर्पित यह मंदिर भारत के कर्नाटक प्रांत के बेल्लारी जिले के हम्पी शहर में स्थित है। यह शहर ‘हम्पी’ कभी मध्यकालीन हिंदू राज्य विजयनगर साम्राज्य की राजधानी हुआ करता था। हम्पी तुंगभद्रा नदी के तट पर स्थित है। यह नगर प्राचीन काल में ‘पंपा’ के नाम से भी जाना जाता था। माना जाता है कि पंपा में ही हनुमान जी की अपने आराध्य श्रीराम जी से पहली भेंट हुई थी।

धार्मिक मान्यताओं के अनुसार हनुमान जी का जन्म स्थान भी यहीं है। इस मंदिर की स्थापना महान हिंदू ऋषि व्यास राज ने कराई थी। कहते हैं कि इसी स्थान पर व्यास राज रोजाना हनुमान जी की पूजा करते थे और कोयले से बजरंगबली जी की तस्वीर बनाते थे। ऋषि के पूजा करने के बाद अपने आप तस्वीर मिट जाया करती थी। उनकी भक्ति से प्रसन्न होकर हनुमान जी ने व्यास राज को दर्शन दिए और एक यंत्र के भीतर बजरंगबली जी की प्रतिमा स्थापित करने का निर्देश दिया। रहस्यमय यंत्र के बीच बैठे भगवान हनुमान की यह प्रतिमा सभी ऊर्जा का स्रोत मानी जाती है।

पौराणिक कथाओं के अनुसार जब रावण, महाराष्ट्र में नासिक के पास, पंचवटी से माता सीता का अपहरण कर लंका ले गया था। तब सीता कहां गईं, श्रीराम और लक्ष्मण को पता नहीं था। वह जंगल-जंगल भटके, लेकिन माता सीता का कुछ भी पता नहीं चला। उस समय सीता की खोज करते हुए दोनों भाई किष्किंधा नगरी पहुंचे। इस क्षेत्र में ही अंजनी पर्वत पर बजरंगबली के पिता महाराज केसरी का राज था, जहां बजरंगबली रहते थे। वाल्मीकि रामायण के अनुसार भगवान श्रीराम और लक्ष्मण की मुलाकात सुग्रीव से हुई। सुग्रीव के मित्र, बजरंगबली थे जब उन्हें पता चला कि दो राजकुमार उनके क्षेत्र में आए हैं। तब वह ब्राह्मण रूप में उनसे मिलने पहुंचे। उन्होंने विनम्रता से कहा, ‘सांवले शरीर वाले आप कौन हैं, क्या आप ब्रह्मा, विष्णु, महेश इन तीन देवताओं में से कोई हैं या आप दोनों नर और नारायण हैं?’

इस पर श्री रामचंद्रजी ने कहा, ‘हम अयोध्या नरेश महाराज दशरथ के पुत्र हैं और पिता का वचन पूरा करने वनवास पर निकले हैं। हमारे राम-लक्ष्मण नाम हैं, हम दोनों भाई हैं। हमारे साथ सुंदर सुकुमारी स्त्री थी। यहां वन में राक्षस ने मेरी पत्नी जानकी को हर लिया।’ ‘हे ब्राह्मण! हम उसे ही खोजते फिरते हैं। हमने तो अपना चरित्र कह सुनाया। अब हे ब्राह्मण! आप अपनी बारे में सुनाइए, आप कौन हैं?’ प्रभु को पहचानकर हनुमानजी उनके चरण पकड़कर पृथ्वी पर नतमस्तक हो गए। उन्होंने श्रीराम को साष्टांग दंडवत प्रणाम कर उनकी स्तुति की। अपने आराध्य को समाने देख वो हर्ष से सराबोर थे। जहां हनुमानजी की भेंट भगवान श्रीराम से हुई यह ओर कोई नहीं हंपी ही थी जिसे प्राचीन काल में पंपा कहते थे।