ज्योतिर्लिंग – त्रयंबकेश्वर शिव मंदिर: भगवान शिव का यह ज्योतिर्लिंग भारत के महाराष्ट्र प्रांत के नासिक जिले के त्रयंबक शहर में स्थित है

ज्योतिर्लिंग – त्रयंबकेश्वर शिव मंदिर: भगवान शिव का यह ज्योतिर्लिंग भारत के महाराष्ट्र प्रांत के नासिक जिले के त्रयंबक शहर में स्थित है, जो नासिक शहर से 28 किलोमीटर दूर है। मंदिर के पास ब्रह्मगिरि नामक पर्वत से पुण्य सलिला गोदावरी नदी निकलती है। उत्तर भारत में पापनाशिनी गंगा का जो महत्व है, वही दक्षिण में गोदावरी नदी का है। जिस तरह गंगा अवतरण का श्रेय महातपस्वी भागीरथ जी को जाता है, वैसे ही गोदावरी का प्रवाह ऋषिश्रेष्ठ गौतम जी की महान तपस्या का फल है, जो उन्हें भगवान आशुतोष से प्राप्त हुआ था।
देवताओं के गुरु बृहस्पति के सिंह राशि में आने पर यहां बड़ा कुंभ मेला लगता है और श्रद्धालुजन गौतमी गंगा में स्नान कर तथा भगवान श्री त्र्यंबकेश्वर का दर्शन कर अपने को कृतकृत्य मानते हैं। शिवपुराण में वर्णन हैं कि गौतम ऋषि तथा गोदावरी और सभी देवताओं की प्रार्थना पर भगवान शिव ने इस स्थान पर निवास करने निश्चय किया और त्र्यंबकेश्वर नाम से विख्यात हुए।
त्र्यंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग सबसे अद्भुत और मुख्य बात यह हैं कि इसके 3 मुख (सिर) हैं, जिन्हें एक भगवान ब्रह्मा, एक भगवान विष्णु और एक भगवान रूद्र का रूप माना जाता है। इस लिंग के चारों ओर एक रत्न जड़ित मुकुट रखा गया है, जिसे त्रिदेव के मुखोटे के रुप में माना गया है। इस मुकुट में हीरा, पन्ना और कई बेशकीमती रत्न लगे हुए हैं। त्र्यंबकेश्वर मंदिर में इसको सिर्फ सोमवार के दिन शाम 4 से 5 बजे तक दर्शनार्थियों को दिखाया जाता है। गोदावरी नदी के किनारे बने त्र्यंबकेश्वर मंदिर का निर्माण काले पत्थरों से किया गया है। इस मंदिर की वास्तुकला बहुत ही अद्भुत और अनोखी है।
भव्य त्र्यंबकेश्वर मंदिर इमारत सिंधु आर्य शैली का अद्भुत नमूना है। इस मंदिर के भीतर एक गर्भगृह है, जिसमें प्रवेश करने के पश्चात् शिवलिंग आंख के समान दिखाई देता हैं, जिसमें जल भरा रहता हैं। यदि ध्यान से देखा जाए तो इसके भीतर 1 इंच के 3 लिंग दिखाई देते हैं। इन तीनो लिंगो को त्रिदेव यानि ब्रह्मा, विष्णु, महेश का अवतार माना जाता है। कालसर्प दोष के निवारण के लिए यहां के वैदिक पंडितों द्वारा करवाई गई पूजा सर्वश्रेष्ठ मानी जाती है।
पौराणिक कथानुसार, प्राचीन समय में ब्रह्मगिरी पर्वत पर देवी अहिल्या के पति ऋषि गौतम रहते थे और तपस्या करते थे। क्षेत्र में कई ऐसे ऋषि थे जो गौतम ऋषि से ईर्ष्या करते थे और उन्हें नीचा दिखाने की कोशिश करते रहते थे। एक बार सभी ऋषियों ने गौतम ऋषि पर छल से गौहत्या का आरोप लगा दिया। सभी ने कहा कि इस हत्या के पाप के प्रायश्चित में देवी गंगा को यहां लेकर आना होगा। तब गौतम ऋषि ने शिवलिंग की स्थापना करके पूजा शुरू कर दी। ऋषि की भक्ति से प्रसन्न होकर शिवजी और माता पार्वती वहां प्रकट हुए। भगवान शिव ने गौतम ऋषि से वरदान मांगने को कहा। तब ऋषि गौतम ने शिवजी से देवी गंगा को उस स्थान पर भेजने का वरदान मांगा। देवी गंगा ने कहा कि यदि शिवजी भी इस स्थान पर रहेंगे, तभी वह भी यहां रहेगी। गंगा के ऐसा कहने पर शिवजी वहां त्र्यंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग के रूप वास करने को तैयार हो गए और गंगा नदी गौतमी के रूप में वहां बहने लगी। गौतमी नदी का एक नाम गोदावरी भी है।