चुनाव 2024 समीक्षा – हरियाणा: प्रदेश में राज्य सरकार होते हुए लोक सभा चुनाव में भारी नुकसान, जानें नुकसान के 5 मुख्य कारण: हरियाणा में भाजपा इस बार सिर्फ 5 सीटें ही जीत पाई। जबकि 2019 के चुनाव में भाजपा को 10 सीटें मिलीं थीं। पिछली बार की तुलना में पार्टी को 5 सीटों का नुकसान हुआ है। हरियाणा में 2019 में 100% सीट लाने वाली भाजपा ने इस बार के चुनाव में पिछले 10 साल में सबसे खराब प्रदर्शन किया है। पांच सीटें गंवाने के साथ भाजपा का वोट शेयर 58 फीसदी से गिरकर 46.1 फीसदी तक पहुंच गया है।
भाजपा ने इस चुनाव को जीतने के लिए जो दांव चला था, वह उलटा पड़ गया। भाजपा की हार में जितनी उसकी रणनीति जिम्मेदार है, उतनी ही भागीदारी हरियाणा सरकार की भी रही है। हर लिया गया फैसला सही है, इस अति आत्मविश्वास ने पार्टी को काफी नुकसान पहुंचाया। अति आत्मविश्वास और अहंकार में अधिक अंतर नहीं होता। उस सूक्ष्म अंतर को समझने में काफी देर हो गई। आइए, जानते हैं वो 5 मुख्य कारण जिनकी वजह से भाजपा को इस चुनाव में इतना नुकसान हुआ।
1. हार के प्रमुख कारणों में सबसे प्रमुख कारण जाटों की नाराजगी रही। जाटों की नाराजगी को पार्टी ने गंभीरता से नहीं लिया। उनसे जुड़ने के बजाय पार्टी उनसे दूर होती चली गई। जनता की छोड़िए, भाजपा के कार्यकर्ताओं तक की सुनने वाला कोई नहीं था। बीच रहने वाले कार्यकर्ताओं की कहीं नहीं सुनी गई।
2. दूसरा प्रमुख कारण, किसानों की अनदेखी। राज्य सरकार ने कभी भी किसानों की बात को गंभीरता से नहीं लिया। उनकी समस्याओं का हल निकालने की बजाय उन्हें और उलझने दिया। अगर राज्य सरकार ने अपनी रणनीति व रवैये में बदलाव नहीं किया तो 4 महीने बाद विधानसभा चुनाव में भारी नुकसान उठाना पड़ सकता है।
3. तीसरा प्रमुख कारण रहा, अग्निवीर योजना। अग्निवीर योजना से पूरे देश में गुस्सा देखा गया। इससे हरियाणा भी अछूता नहीं रहा। हरियाणा के ग्रामीण इलाकों से काफी संख्या में युवक फौज में शामिल होते हैं। इस योजना से ग्रामीण युवाओं में काफी नाराजगी देखी गई। विपक्ष ने भी इन इलाकों में मजबूती से मुद्दा बनाए रखा।
4. प्रदेश अध्यक्ष को केंद्र की जिम्मेदारी सौंपना। 3 साल से हरियाणा में काम कर रहे ओम प्रकाश धनखड़ को पार्टी ने केंद्र का काम सौंप दिया। जबकि, धनखड़ ने गांव-गांव जाकर बूथ मैनेजमेंट पर काफी फोकस होकर काम किया था। नए कार्यकर्ताओं की बड़ी फौज तैयार की थी। धनखड़ को हटाकर नायब सिंह सैनी को प्रदेश अध्यक्ष बना दिया। सैनी जब तक कुछ समझ पाते तब तक पार्टी ने उन्हें मुख्यमंत्री बना दिया। लोकसभा चुनाव के दौरान प्रदेश अध्यक्ष की जिम्मेदारी भी सीएम नायब सिंह सैनी के पास थी। जबकि वह खुद चुनाव लड़ रहे थे। यदि चुनाव के बाद धनखड़ को हटाते तो शायद इतना नुकसान नहीं होता।
5. पांचवां मुख्य कारण रहा, टिकट बंटवारे में नासमझी। चुनाव के दौरान कुछ ऐसे लोगों को टिकटें दी गईं, जिसे स्थानीय कार्यकर्ता स्वीकार नहीं कर सके। हिसार, सिरसा और रोहतक के उम्मीदवारों को लेकर कार्यकर्ताओं तक में विरोध था। मगर हरियाणा पार्टी के शीर्ष नेतृत्व ने इस विरोध को दरकिनार कर दिया। उलटा उन्होंने केंद्रीय नेतृत्व को विश्वास जता दिया कि वह चुनाव जीत रहे। सिरसा और रोहतक में सबसे बड़े मार्जिन से पार्टी की हार हुई है।