सूर्य मंदिर, झालावाड़

सूर्य मंदिर, झालावाड़

भगवान सूर्य को समर्पित यह यह मंदिर भारत के राजस्थान प्रांत के झालावाड़ जिले के झालरापाटन शहर में स्थित है। झालावाड़ सूर्य मंदिर का निर्माण नाग भट्ट द्वितीय ने विक्रम संवत 872 में किया था, तदनुसार, इसे 815 ईस्वी में बनाया गया था। इस मंदिर को पद्मनाभ मंदिर, बड़े मंदिर और ‘सात सहेलियों के मंदिर’ के रूप में भी जाना जाता है। इन मंदिरों की वास्तुकला कोणार्क सूर्य मंदिर और खजुराहो के मंदिर से मिलती जुलती है। मंदिर का निर्माण सूर्य के रथ की तरह है, जिसमें सात घोड़े विराजमान हैं।

उड़ीसा के काेणार्क मंदिर की तर्ज पर बने झालरापाटन सूर्य मंदिर (Jhalrapatan Sun Temple) में सूरज की पहली किरण भगवान के पैर छूती है। यही नहीं, सूर्य मंदिर में पीछे की ओर पत्थर पर उत्कीर्ण सूर्य भगवान की 4 फीट ऊंची प्रतिमा पैरों में घुटनों तक जूते पहने हुए है। यह सूर्य मंदिर पूरे विश्व में एक मात्र मंदिर है जहां सूर्य भगवान की प्रतिमा जूते पहने हुए है। झालावाड़ का सूर्य मंदिर (Jhalawar Sun Temple) कच्छपघात शैली का अनुपम उदाहरण है। झालरापाटन शहर के हृदय स्थल पर स्थित यह विशाल मंदिर 9वीं शताब्दी का है। इतिहासकारों के अनुसार, इस मंदिर का एक शिलालेख विक्रम संवत 1632 का इसके शिखर पर लगा हुआ है।

झालावाड़ मंदिर का शिखर जमीन से 107 फीट ऊंचा है। मंदिर का ऊर्घ्वमुखी कलात्मक अष्टदल कमल अत्यन्त सुन्दर जीवंत और आकर्षक है। शिखरों के कलश और गुम्बज अत्यन्त सुन्दर हैं। गर्भगृह के बाद अंतराल मंडप के दोनों ओर ऊपर गंगा-यमुना की मूर्तियां और दो रथिकाएं हैं। इन रथिकाओं के ऊपर शिव पार्वती स्तंभ हैं। इन पर कई रथ बने हुए हैं। मध्य में एक चमरधारणी और ऊपर तीन खंडों में पुरुष युग्म बने हुए हैं। यह सभी स्तंभ अष्टकोणीय हैं। मंदिर के ऊपरी भाग में कई सुंदर मूर्तियां बनी हुई हैं। इनमें उत्तर की ओर बंशीधारी गंधर्व की मूर्ति और दक्षिण की तरह मुख्य रथिका में हिरण्यकश्यप वध दिखाई देता है। इसके नीचे की रथिका में देवी मूर्ति है। झालरापाटन का सूर्य मंदिर, कोणार्क और खजुराहो के मंदिरों की शैली की याद दिलाता है।