श्री  मयूरेश्वर / मोरेश्वर  गणेश मंदिर

श्री  मयूरेश्वर / मोरेश्वर  गणेश मंदिर

प्रथम पूज्य भगवान गणेश को समर्पित यह मंदिर  महाराष्ट्र प्रांत के  पुणे जिले के  मोरगांव में स्थित है। जो महाराष्ट्र राज्य के पुणे शहर से 70 किलोमीटर की दूरी पर है। यह मंदिर भगवान गणेश के  अष्टविनायकों का प्रारंभ और अंत बिंदु दोनों ही है। अष्टविनायकों की यात्रा के अंत में यदि आप मोरगांव मंदिर नही आते तो आपकी यात्री को अधूरा समझा जाता है। यह मंदिर भगवान गणेश के अष्टविनायकों में से एक ही नही बल्कि भारत के  प्राचीनतम मंदिरों में से भी एक है।

मोरगांव गणपति मंदिर संप्रदाय के सबसे प्रवित्र और मुख्य क्षेत्रो में से एक है, जहाँ भगवान गणेश की ही पूजा मुख्य देवता के रूप में की जाती है। मान्यता है, जब भगवान गणेश ने राक्षसी दैत्य सिंधु की हत्या की थी तभी इस मंदिर की उत्पत्ति की गयी थी। लेकिन मंदिर के उत्पत्ति की वास्तविक तारीख के बारे में कोई पुख्ता जानकारी उपलब्ध नही है। लेकिन जानकारों के अनुसार गणपति संत मोर्य गोसावी का संबंध इस मंदिर से जरुर है। पेशवा साम्राज्यों और मौर्य गोसावी के संरक्षकों की वजह से मंदिर को काफ हद तक निखारा गया है

मोरगांव मंदिर और पुणे के आस-पास के सभी गणपति मंदिरों को ब्राह्मण  पेशवा शासको का संरक्षण मिलता था। 18 वी शताब्दी में मराठा साम्राज्य ने बहुत से मंदिरों को निखारा भी था। पेशवा गणपति की अपने कुल देवता के रूप में पूजा करते थे, पेशवाओ ने गणपति मंदिर बनवाने के लिए आर्थिक सहायता भी की थी। वर्तमान में यह मंदिर चिंचवड देवस्थान ट्रस्ट के शासन प्रबंध में है, जो चिंचवड से मंदिर की देखभाल करते है। मोरगांव के अलावा यह ट्रस्ट  चिंचवड मंदिर और थेउर और  सिद्धटेक मंदिर को भी नियंत्रित करता है।

महाराष्ट्र में पुणे से 70 किलोमीटर दूर मोरगांव इलाके में  मयूरेश्वर गणपति मंदिर के चारों कोनों में मीनारें हैं और लंबे पत्थरों की दीवारें हैं। यहां मौजूद चारों दरवाजे चारों युगों-  सतयुग,  त्रेतायुग,  द्वापरयुग और  कलियुग के प्रतीक हैं। इस मंदिर के द्वार पर शिव जी के वाहन नंदी की मूर्ति स्थापित है। इसका मुंह भगवान गणेश की मूर्ति की ओर है। नंदी की मूर्ति के संबंध में यह मान्यता प्रचलित है कि प्राचीन काल में शिव जी और नंदी इस मंदिर क्षेत्र में विश्राम के लिए रुके थे, लेकिन बाद में  नंदी ने यहां से जाने के लिए मना कर दिया। तभी से नंदी यहीं पर हैं। नंदी और मूषक (चूहा) दोनों ही मंदिर के रक्षक के रूप में रहते हैं। मंदिर में गणेश जी बैठी मुद्रा में विराजमान हैं और उनकी सूंड बाएं हाथ की ओर है, उनकी 4 भुजाएं और 3 नेत्र हैं। स्थानीय लोगों की मानें तो प्रारंभ में मूर्ति आकार में छोटी थी, परंतु दशकों से इस पर सिन्दूर लगाने के कारण यह अब इतनी बड़ी दिखती है।