मां भगवती को समर्पित 51 शक्तिपीठों में से एक यह शक्तिपीठ नेपाल की राजधानी काठमांडू से 3-4 किमी दूर वनकाली जंगल में बागमती नदी के किनारे पशुपतिनाथ क्षेत्र में स्थित है। इस मंदिर को गुजेश्वरी के नाम से भी जाना जाता है। गुह्येश्वरी मंदिर से जुड़ी कई प्रचलित मान्यताओं में से एक मान्यता के मुताबिक, इस जगह पर देवी सती के घुटने (जानु) गिरे थे। एक और मान्यतानुसार, यहां देवी सती के शरीर से संधिस्थल (शौच अंग) गिरे थे।
गुह्येश्वरी दो शब्दों गुह्या (गुप्त) और ईश्वरी (देवी) से मिलकर बना है। इन्हें गुह्याकाली भी कहा जाता है। दरअसल यह देवी तांत्रिकों की देवी हैं। यहां की देवी महाशिरा और महामाया नामों से भी जानी जाती हैं। यहां के भैरव कपाली हैं। पशुपतिनाथ मंदिर से कुछ दूरी पर बागमती नदी के दूसरी तरफ स्थित इस मंदिर में विराजमान देवी नेपाल की अधिष्ठात्री देवी के रूप में भी पूजी जाती हैं। कहते हैं कि गुह्येश्वरी शक्तिपीठ लगभग 2500 वर्ष पुराना है। यह काठमांडू में यूनेस्को की वर्ल्ड हेरिटेज साइट्स में से एक है। 17वीं सदी में राजा प्रताप मल्ला ने इस मंदिर का पुन:निर्माण कराया था। इसके बाद कांतिपुर के नौवें राजा ने पैगोडा शैली में बने इस मंदिर का जीर्णोद्धार कराया।
गुहेश्वरी देवी मंदिर (Guhyeshwari Devi Temple) के गर्भगृह में एक छिद्र है। ये पूरी तरह से प्राकृतिक है। इस छिद्र से जल की धारा बहती रहती है। ये चांदी के कलश से ढंका हुआ है। मंदिर समिति के सदस्य रामकृष्ण डांगोल कहते हैं, ”मंदिर में मार्ग कृष्ण अष्टमी से दशमी विशेष आयोजन होते हैं। इस दौरान देवी गुह्येश्वरी की बहन देवी ताजेलु भवानी यानी तलेजु भवानी की प्रतिमा को मंदिर लाया जाता है। दोनों बहनों की पूजा साथ होती है। इस पर्व में पशु बलि के साथ ही तांत्रिक पूजा भी होती है।”