शक्ति पीठ – श्री माता चिंतपूर्णी मंदिर: मां भगवती को समर्पित ये शक्तिपीठ भारत के हिमाचल प्रदेश के ऊना जिले के चिंतपुरी में स्थित है। इस शक्ति पीठ को छिन्नमस्तिका शक्तिपीठ के नाम से भी जाना जाता है जो उत्तर में पश्चिमी हिमालय और पूर्व में पंजाब राज्य की सीमा से लगे शिवालिक पर्वतमाला से घिरा है। सोला सिंघी पर्वतमाला पर स्थित यह मंदिर चारों ओर से 4 शिव मंदिरों कालेश्वर महादेव, नर्हारा महादेव, मुच्कुंड महादेव और शिवबाड़ी से घिरा है। नवरात्रों में यहां श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है। वहीं उत्तर भारत में 9 शक्तिपीठों की यात्रा में चिंतपूर्णी शक्तिपीठ के दर्शन 5वें नंबर पर होते हैं। शास्त्रानुसार, इस जगह माता सती के चरण गिरे थे।
प्राचीन कथाओं के अनुसार, 14वीं शताब्दी में माई दास नामक मां दुर्गा के भक्त ने इस स्थान की खोज की थी। माई दास का जन्म अठूर गांव, रियासत पटियाला में हुआ था। 3 भाइयों में सबसे छोटे भाई माई दास का अधिकतर समय पूजा-पाठ में ही गुजरता था। इसलिए वह परिवार के कार्यों में हाथ नहीं बंटा पाता था। इससे तंग आकर भाइयों ने माई दास को परिवार से अलग कर दिया। अलग होने के वाबजूद माई दास ने पूजा-पाठ और दुर्गा भक्ति में समय व्यतीत करना जारी रखा। एक दिन माई दास अपनी ससुराल जाते समय एक वट वृक्ष के नीचे आराम करने बैठ गए। इसी वट वृक्ष के नीचे आज मन्दिर है। तब वहां घना जंगल था। इस जगह का नाम छपरोह था, जिसे आजकल चिंतपूर्णी कहते हैं। थकावट के कारण माई दास की आंख लग गई और स्वप्न में उन्हें दिव्य तेजस्वी कन्या के दर्शन हुए, जिसने उनसे कुछ कहा।
कथा के अनुसार, कन्या ने कहा कि माई दास! इसी वट वृक्ष के नीचे बीच में मेरी पिंडी बनाकर उसकी पूजा करो। तुम्हारे सब दुख दूर होंगे। माई दास को कुछ समझ नहीं आया और वह ससुराल चले गए। ससुराल से वापस आते समय उसी स्थान पर माई दास जी के कदम फिर रुक गए। उन्हें आगे कुछ नहीं दिखाई दिया। वह फिर उसी वट वृक्ष के नीचे बैठ गए और स्तुति करने लगे। उन्होंने मन ही मन प्रार्थना की। हे दुर्गा मां यदि मैंने सच्चे मन से आपकी उपासना की है तो दर्शन देकर मुझे आदेश दो। बार-बार स्मृति करने पर उन्हें सिंह वाहिनी दुर्गा के दर्शन हुए। देवी ने कहा कि मैं उस वट वृक्ष के नीचे चिरकाल से विराजमान हूं। लोग यवनों के आक्रमण तथा अत्याचारों के कारण मुझे भूल गए हैं। तुम मेरे परम भक्त हो। अतः यहां रहकर मेरी आराधना करो। यहां तुम्हारे वंश की मैं रक्षा करुंगी।
मां भगवती दुर्गा के दर्शन होने के बाद भक्त माई दास ने कहा कि मां मैं यहां रहकर कैसे आपकी आराधना करुंगा। यहां घने जंगल में न तो पीने योग्य पानी है और न ही रहने योग्य उपयुक्त स्थान। मां दुर्गा ने कहा कि मैं तुमको निर्भय दान देती हूं कि तुम किसी भी स्थान पर जाकर कोई भी शिला उखाड़ो वहां से जल निकल आएगा। इसी जल से तुम मेरी पूजा करना। मां ने जैसा कहा वैसा ही हुआ। आज इसी वट वृक्ष के नीचे मां चिंतपूर्णी का भव्य मन्दिर है और वह शिला भी मन्दिर में रखी हुई है, जिस स्थान पर जल निकला था। चिंतपूर्णी मंदिर (Chintapurni Temple) परिसर में मां संतोषी की मूर्ति भी स्थापित है। मंदिर में प्रवेश करते ही मुख्य द्वार पर सीधे हाथ पर एक पत्थर है। यह पत्थर वह स्थान है, जहां पर बैठकर माता ने भक्त माई दास को दर्शन दिए थे। मंदिर के साथ ही एक वट वृक्ष भी है, जहां पर श्रद्धालु कच्ची मौली (कलावा) बांधकर अपनी मनोकामना पूरी होने की मन्नत मांगते हैं। आगे पश्चिम की और बढ़ने पर बड़ का वृक्ष है, जिसके नीचे भैरव और गणेश के दर्शन होते हैं।