महर्षि सांदीपनि आश्रम, उज्जैन

महर्षि सांदीपनि आश्रम, उज्जैन

भगवान श्रीकृष्ण के गुरु सांदीपनि का यह आश्रम भारत के मध्यप्रदेश प्रांत की धार्मिक नगरी उज्जैन में मंगलनाथ रोड पर स्थित है। महाकाल की नगरी उज्जैन महाकालेश्वर मंदिर के साथ और भी कई धार्मिक स्थलों के लिए जानी जाती है। इन स्थलों में एक प्रमुख स्थल है सांदीपनि आश्रम, जहां भगवान श्री कृष्ण ने अपनी शिक्षा प्राप्त की थी। आज हम आपको भगवान श्री कृष्ण के उस विद्यालय के बारे में बताते हैं, जहां उन्होंने जीवन का क,ख,ग से लेकर ज्ञ तक सब सीखा था।

उज्जैन धार्मिक महत्व के अलावा, महाभारत काल की शुरुआत में पढ़ाई का मुख्य केंद्र था। भगवान श्री कृष्ण, बलराम और सुदामा ने गुरु सांदीपनि के आश्रम में बचपन में शिक्षा ग्रहण की थी। आश्रम के पास के इलाके को अंकपात के नाम से भी जाना जाता है। मान्यता है कि ये जगह भगवान श्री कृष्ण द्वारा अपनी लेखनी को धोने के लिए उपयोग किया गया था। कहते हैं कि पहले ये आश्रम घास-फूस का बना हुआ था, लेकिन बाद में इसे बचाने के लिए पक्का बना दिया गया। एक पुजारी का कहना है कि ये आश्रम 5241 साल पुराना है।

महर्षि सांदीपनि आश्रम (Maharishi Sandipani Ashram) में भगवान श्रीकृष्ण, बलराम और सुदामा की बैठी हुई बाल रूप की प्रतिमा स्थापित है। सभी एक साथ विद्यार्थी की तरह हाथों में स्लेट और कलम लेते हुए दिख रहे हैं। जब भगवान श्रीकृष्ण पढ़ने के लिए आए तब उनकी उम्र 11 साल थी। कहते हैं कि भगवान श्री कृष्ण ने यहां 64 विद्याएं और 16 कलाओं का ज्ञान लिया था। अपने मामा कंस का वध करने के बाद कृष्ण जी ने बाबा महाकालेश्वर की नगरी अवंतिका में आने के बाद 64 दिनों तक रुककर शिक्षा प्राप्त की थी।

पुजारी रूपम व्यास के अनुसार शहर के नागरिक ही नहीं देशभर से लोग अपने बच्चे को पहली बार स्कूल भेजने के पहले यहां आकर उनका विद्यारंभ संस्कार कराते हैं। गुरु पूर्णिमा पर भी यहां विद्यारंभ संस्कार के लिए 200 से ज्यादा लोग आते हैं। सालभर यहां आने वाले यात्रियों को भी जब इसकी जानकारी मिलती है तो वे बच्चों का विद्या-बुद्धि संस्कार कराने को उत्सुक हो जाते हैं। आश्रम के मध्य में गुरु संदीपनी के मंदिर के साथ भगवान कृष्ण, बलराम और सुदामा की मूर्तियाँ भी हैं, जो आगंतुकों को गुरु और शिष्य के बीच गहरे बंधन की याद दिलाती हैं।

सांदीपनि आश्रम का सबसे आकर्षक पहलू वह पत्थर है जिस पर 1 से 100 तक के अंक खुदे हुए हैं। माना जाता है कि इस पत्थर पर गुरु संदीपनी ने खुद निशान लगाए थे, जो यहाँ प्रचलित शिक्षण की प्राचीन पद्धतियों को दर्शाते हैं। आश्रम से गुजरते हुए आपको सर्वेश्वर महादेव मंदिर भी मिलेगा, जिसमें 6000 साल पुराना शिवलिंग है, जिस पर शेषनाग का प्राकृतिक चित्रण है। मान्यता के अनुसार, इस शिवलिंग की पूजा गुरु संदीपनी और उनके शिष्यों ने की थी, जिससे इस स्थान पर आध्यात्मिकता का एक और स्तर जुड़ गया।