सूर्य मंदिर, कंदाहा

सूर्य मंदिर, कंदाहा

भगवान सूर्य को समर्पित श्रीकृष्ण के पुत्र सांब द्वारा निर्मित यह सूर्य मंदिर भारत के बिहार प्रांत के सहरसा जिले के कंदाहा गांव में स्थित है। मान्यतानुसार, कंदाहा सूर्य मंदिर कोणार्क और देव सूर्य मंदिर से भी कहीं अधिक विशिष्ट और श्रेष्ठ है। लेकिन सरकारी उपेक्षा और प्रशासनिक उदासीनता का दंश झेल-झेल कर गुमनामी के अंधेरे में गुम होने की कगार पर है। सूर्य पुराण और महाभारत के मुताबिक भगवान श्री कृष्ण के बेटे सांब द्वारा निर्मित इस सूर्य मंदिर की श्रेष्ठता इस बात से प्रामाणित होती है कि इस मंदिर में राशियों में प्रथम मेष राशि के साथ सूर्य की प्रतिमा स्थापित है।

मंदिर में अष्टभुजी गणेश हैं विराजमान

मान्यता है की बैसाख महीने में जब सूर्य मेष राशि में प्रवेश करते हैं तो सूर्य की पहली किरण इसी सूर्य प्रतिमा और उनके रथ पर पड़ती है। इस मंदिर में सभी 12 राशियों की कलाकृति के साथ-साथ सूर्य यंत्र भी मौजूद है। यही नहीं इस मंदिर में अष्टभुजी गणेश भी विराजमान हैं, जो विरले ही कहीं किसी मंदिर में देखने को मिलेगा।

गणेश की अदभुत प्रतिमा के अलावा मंदिर में काले पत्थर से बनी सूर्य देव की आदमकद प्रतिमा और उनकी पत्नियों संज्ञा तथा छाया की प्रतिमाएं स्थापित हैं। लेकिन तमाम श्रेष्ठता और इस मंदिर की दीवारों पर अंकित कलाकृतियां खजुराहो की शिल्पकला से मिलती जुलती हैं, जो इसके ऐतिहासिक महत्त्व को बढ़ाती हैं। विशेषता के बाद भी इस मंदिर की ख्याति कोणार्क या फिर देव के सूर्य मंदिर की तरह नहीं है। आश्चर्य बात यह है कि इस मंदिर को जहां आज पर्यटन के मानचित्र पर बुलंदी से खड़ा होना चाहिए था, वह आज गुमनामी की ओर अग्रसर हो रहा है।

कंदाहा सूर्य मंदिर (Kandaha Sun Temple) के पुजारी कहते हैं, “यहां मुखिया जी हों, या विधायक जी हों या मंत्री जी हों सब केवल देख कर चले जाता है, लेकिन कोई नेता इस मंदिर के लिए सोचता नहीं है। द्वापर युग में भगवान श्री कृष्ण का बेटे सांब ने बारह राशियों में सूर्य की स्थापना की थी, उसी में प्रथम मेष राशि की प्रतिमा इस जगह है। कितनी बार मंदिर बना और टूटा लेकिन 1334 ई. में इनवार वंश का राजा भवदेव सिंह द्वारा मंदिर का जीर्णोद्धार हुआ।

कंदाहा सूर्य मंदिर की विशेषता

कंदाहा सूर्य मंदिर की एक और विशेषता है कि मंदिर के परिसर में एक कुआं है। ऐसी मान्यता है कि किसी को अगर सफेद दाग हो या चर्म रोग हो तो उस व्यक्ति को इस कुएं के जल से स्नान कराने से और सूर्य भगवान का चरणामृत पिलाने से, उसका चर्म रोग या सफेद दाग हमेशा के लिए ठीक हो जाता है। वहीं जो श्रद्धालु सच्चे मन से मनोकामना लेकर सूर्य देवता के पास आते हैं उनकी मनोकामना अवश्य पूरी होती हैं।

वर्ष 1982 में, भारत सरकार के पुरातत्त्व विभाग ने कंदाहा सूर्य मंदिर का अधिग्रहण एक सुरक्षित स्मारक के रूप में किया था। लेकिन अधिग्रहण के बाद भी मंदिर का समुचित विकास नहीं हो सका। सरकार द्वारा उपेक्षित होने के बाद भी मंदिर में भक्तों का आना जाना लगा रहता है। छठ पूजा पर तो भारी संख्या में श्रद्धालु दर्शन और पूजा करने के लिए आते हैं।