रहली का सूर्य मंदिर

रहली का सूर्य मंदिर

सूर्य देव को समर्पित यह मंदिर भारत के मध्यप्रदेश प्रांत के सागर जिले के रहली नगर में सुनार एवं देहार नदियों के पवित्र संगम पर स्थित है। इतिहासकारों के अनुसार, रहली के सूर्य मंदिर का निर्माण 10वीं शताब्दी में चन्देल राजाओं ने करवाया था। कर्क रेखा पर स्थित होने के कारण रहली के पूर्वाभिमुख सूर्य मंदिर का महत्त्व और भी बढ़ जाता है। सूूर्य षष्ठी पर श्रद्धालुओं द्वारा मंदिर में विराजमान सूर्यदेव का विशेष पूजन अर्चन किया जाता है। प्राचीन मंदिर व प्रतिमाओं के प्रेमी व भगवान सूर्य की साधना करने वाले साधक रहली के सूर्य मंदिर पहुंचते हैं।

रहली के सूर्य मंदिर (Sun Temple, Rehli, Sagar) में विराजमान सूर्यदेव की प्रतिमा बहुत सौम्य एवं दिव्य है। कमलपुष्प पर खड़े हुए सूर्यदेव के दो हाथों में सनाल पुष्प हैं। हाथों में शंख, चक्र, गदा, पदम् धारण किये हैं। पाषाण प्रतिमा में सूर्यदेव किरीट, मुकुट, मकर, कुंडल, मुक्ताहार, कवच, कंकड़, वक्षबन्ध, यज्ञउपवीत, कटिसूत्र, करधनी, लम्बे जूते आदि धारण किये हुए हैं। सूर्य प्रतिमा के पीछे प्रभामण्डल बना हुआ है तथा मध्य में महाश्वेता देवी अभय मुद्रा में हैं। महाश्वेता देवी के दोनों ओर सूर्यदेव की दोनों पत्नियाँ हैं। अरुण को सात घोड़ों के रथ हाँकते हुए दिखाया गया है, अरुण के दोनों ओर कुबेर और वैश्रवण हैं। मालाधारी विद्याधर तथा परिचारिकाएं इस प्रतिमा में सुंदर प्रतीत होती हैं।

मन्दिर में स्थापित भगवान सूर्य की प्रतिमा लगभग 5 फुट की है। जिसे विगत कुछ वर्षों पहले असमाजिक तस्करों ने चुरा लिया था, लेकिन पुलिस-प्रशासन की अद्भुत सक्रियता के कारण अनमोल, दिव्य प्रतिमा को प्राप्त कर उसी जगह पुनः प्राण-प्रतिष्ठित किया गया। मंदिर परिसर में प्रदक्षिण पथ, नटराज, उमा महेश्वर, स्थानक गणेश, नृत्य गणेश,नाग युग्म, कुबेर, त्रिमुखी ब्रम्हा, चतुर्भुज लक्ष्मी, सरस्वती, के अलावा शैव, वैष्णव, शाक्य, तथा गणपति सम्प्रदाय की प्रतिमाएं स्थापित हैं, जिसे सुर, सुंदरी, अग्नि, वरुण, वायु, इंद्र आदि प्रमुख हैं। इस अद्भुत दिव्य स्थल को संरक्षित और जीर्णोद्धार के माध्यम से पर्यटन स्थल के रूप में विकसित किया जा सकता है।

गणेश प्रतिमाएं कलचुरीकाल की

रहली क्षेत्र के सूर्य मंदिर में जो प्रतिमाएं हैं, उससे स्पष्ट है कि ये सूर्य मंदिर कलचुरीकाल का रहा होगा। ये प्रतिमाएं कलचुरीकाल की हैं और वर्तमान मेंं सूर्य मंदिर अपने मूल स्वरूप में नहीं है। लेकिन मंदिर में नटराज, देवी, गणेश और विष्णु की प्रतिमाएं संग्रहित की गई हैं। रहली क्षेत्र में कल्चुरियों का शासन रहा है। यहां जो प्रतिमाएं मिली वह सभी कलचुरी काल की हैं। उनमें कलचुरी काल की मूर्तिकला स्पष्ट नजर आती। उमा महेश्वर की प्रतिमा में शिव परिवार गणेश, कार्तिकेय और शिव के गण दर्शाए गए हैं। इसके साथ रहली सूर्य मंदिर में गणेश जी की स्वतंत्र प्रतिमाएं भी नजर आती हैं। सूर्य मंदिर में जो प्रतिमाएं शिलाफलक पर लगाई गई हैं, वह स्वतंत्र प्रतिमाएं हैं। इन प्रतिमाओं को दो स्तंभों के बीच में दर्शाया गया है।

नृत्य और त्रिभंग मुद्रा में गणेश प्रतिमा

रहली सूर्य मंदिर में पहली प्रतिमा नृत्य गणेश की प्रतिमा है, जिसमें नृत्य गणेश को चतुर्भुजी दर्शाया गया है। उनके एक हाथ में परशु और एक हाथ में पार्श्व और मोदक भी है। गणेश का एक हाथ नृत्य मुद्रा में है। यह नृत्य मुद्रा की अद्भुत प्रतिमा है, जिसमें गणेश जी मूषक पर नृत्य करते हुए दर्शाए गए हैं। मान्यता है कि गणेश जब नृत्य मुद्रा में होते हैं, तो काफी प्रसन्न और मंगलकारी होते हैं। इस मुद्रा में गणेश पूजा भी अच्छी मानी जाती है। दूसरी गणेश प्रतिमा त्रिभंग मुद्रा में है, जो नृत्य मुद्रा की तरह चतुर्भुजी है। इस प्रतिमा में भी एक हाथ में परशु है लेकिन दूसरे हाथ में एक आयुध अस्पष्ट है। एक हाथ में पार्श्व है और एक हाथ अभय मुद्रा में है। गणेश जी की मूर्ति पारंपरिक आभूषण पहने हुए हैं। भगवान गणेश की त्रिभंग मुद्रा की प्रतिमा भी मंगलकारी मानी जाती है।