नीलकंठ महादेव मंदिर, ऋषिकेश

नीलकंठ महादेव मंदिर, ऋषिकेश

भगवान शिव को समर्पित यह मंदिर भारत के उत्तराखंड प्रांत के पौड़ी गढ़वाल जिले के मणिकूट पर्वत पर स्थित मधुमती और पंकजा नदी के संगम पर स्थित है। नीलकंठ महादेव मंदिर के दर्शन के लिए श्रावण मास में हर साल लाखों श्रद्धालु कांवड़ में गंगाजल लेकर जलाभिषेक के लिए पहुंचते हैं। यह मंदिर ऋषिकेश में स्वर्गाश्रम से करीब 22 किलोमीटर की दूरी पर है। मंदिर की नक्काशी देखते ही बनती है। इसकी वास्तुकला द्रविड़ शैली से बहुत प्रभावित है।

श्री नीलकंठ महादेव मंदिर (Neelkanth Mahadev Temple Rishikesh) का भी अपना एक रोचक इतिहास है। यहां आने वाले सभी श्रद्धालु भगवान शिव को गंगा जल चढ़ाते हैं और साथ ही साथ अपनी मनोकामना पूर्ति के लिए मंदिर परिसर में धागा बांधते हैं। मन्नत पूरी होने पर वे धागा खोलने आते हैं। इस मंदिर तक पहुंचने के लिए कई तरह के पहाड़ और नदियों से होकर गुजरना पड़ता है।

भगवान शिव ने क्यों किया विष पान?

पौराणिक कथा के अनुसार, समुद्र मंथन से जो निकला वो या तो देवताओं में बंट गया या फिर दैत्यों में लेकिन हलाहल नाम के विष को न तो देवता चाहते थे और ना ही असुर। यह विष इतना खतरनाक था कि संपूर्ण सृष्टि का विनाश कर सकता था। इस विष की अग्नि से दसों दिशाएं जलने लगी थीं, जिससे संसार में हाहाकार मच गया। तभी भगवान शिव ने पूरे ब्रह्मांड को बचाने के लिए विष का पान किया। अपनी आंतरिक शक्ति से शिव ने विष को गले से नीचे नहीं उतरने दिया। जिससे वो विष कंठ में ही रह गया।

वृक्ष के नीचे समाधि में लीन हो गए महादेव

विष को गले तक रोकने के कारण भगवान शिव का गला नीला पड़ गया और फिर तभी से महादेव नीलकंठ कहलाये। विष की गर्मी से बेचैन भगवान शिव शीतलता की खोज में हिमालय की ओर चले गए। खोजते हुए उन्हें मणिकूट पर्वत पर पंकजा और मधुमती नदी के संगम पर शीतलता महसूस हुई। जहां वे एक वृक्ष के नीचे बैठ कर समाधि में पूरी तरह लीन हो गए। वर्षों तक समाधि में ही रहने से माता पार्वती परेशान हो गईं और वह भी उनके पास बैठ गईं। मान्यता है कि भगवान शिव ने यहां 60000 वर्षों तक तपस्या की।

मंदिर का नाम नीलकंठ महादेव मंदिर कैसे पड़ा?

समाधि में लीन भगवान शिव के पास माता पार्वती को भी कई वर्ष बीत गए। लेकिन कई वर्षों बाद भी भगवान शिव समाधि में लीन ही रहे। देवी-देवताओं की प्रार्थना करने के बाद भोलेनाथ ने आंख खोली और कैलाश पर जाने से पहले इस जगह को नीलकंठ महादेव का नाम दिया। इसी वजह से आज भी इस स्थान को नीलकंठ महादेव के नाम से जाना जाता है। जिस वृक्ष के नीचे भगवान शिव समाधि में लीन थे, आज उस जगह पर एक विशालकाय मंदिर है और हर साल लाखों की संख्या में शिव भक्त इस मंदिर के दर्शन करने के लिए आते हैं।