मां छिन्नमस्तिका मंदिर, रजरप्पा

मां छिन्नमस्तिका मंदिर, रजरप्पा

मां भगवती को समर्पित देवी का यह शक्तिपीठ भारत के झारखंड प्रांत के रामगढ़ जिले के तीर्थस्थल रजरप्पा में स्थित है। यह स्थान राजधानी रांची से करीब 80 किमी दूर है। मंदिर के इतिहास के अनुसार, देवी का यह मंदिर 6000 साल पुराना है। यहां देवी को प्रेम के देवता कामदेव और प्रेम की देवी रति पर खड़ी नग्न देवी के रूप में दिखाया गया है। मंदिर अपनी तांत्रिक शैली की वास्तुकला के लिए भी मशहूर है। इस मंदिर में बिना सिर वाली देवी की पूजा होती है। मान्यतानुसार, इस मंदिर में दर्शन करने से भक्‍तों की सभी मनोकामनाएं पूरी हो जाती हैं। इसलिए हर साल हजारों की संख्‍या में भक्‍त यहां मां के दर्शन के लिए आते हैं। बता दें कि देवी का ये मंदिर 51 शक्तिपीठों में दूसरा बड़ा शक्तिपीठ है।

एक प्रचलित कथानुसार, एक बार जब देवी मां अपनी सहेलियों के साथ गंगा नदी में स्‍नान करने गईं, तो कुछ समय वहां रुकने की वजह से उनकी दो सहेलियां भूख से व्याकुल हो उठीं। दोनों सहेलियों की भूख इतनी तेज थी कि दोनों का रंग काला पड़ गया। वह मां से भोजन की मांग करने लगीं। मां ने उनसे धैर्य रखने को कहा, लेकिन वह भूख से तड़प रही थीं। माता ने अपनी सहेलियों का हाल देखकर अपना ही सिर काट दिया। जब उन्‍होंने अपना सिर काटा, तो उनका सिर उने बाएं हाथ में आ गिरा। उसमें से रक्‍त की तीन धाराएं बहने लगीं। दो धाराओं को तो देवी मां ने सहेलियों की तरफ दे दिया और बची हुई धारा से खुद रक्‍त पीने लगीं।

छिन्नमस्ता देवी (Chhinnamasta Devi) का रूप उग्र होने की वजह से इनकी पूजा खासतौर से शत्रुओं पर जीत प्राप्‍त करने के लिए की जाती है। इसलिए तंत्र-मंत्र कि क्रियाओं में भी इनकी पूजा करने की परंपरा है। इन्‍हें बलि चढ़ाकर और तंत्र साधना के जरिए भक्‍त अपनी मनोकामना को पूरी करते हैं। मंदिर के भीतर देवी छिन्नमस्तिका की मूर्ति अद्भुत है। उनकी प्रतिमा कमल के फूल पर स्‍थापित है। उनकी तीन आंखेें हैं। दाएं हाथ में तलवार और बाएं हाथ में देवी अपना ही कटा हुआ सिर पकड़े हुए हैं। देवी के पैरों के नीचे विपरीत मुद्रा में कामदेव और रति शयन अवस्‍था में विराजे हैं। देवी मां के बाल खुले और बिखरे हैं। वे सर्पमाला और मुंडमाला धारण किए हैं। माता आभूषणों से सजी हुई नग्‍न अवस्‍था में अपने दिव्‍य और विशाल रूप में यहां विराजित हैं।