चौरासी खंभा मंदिर, गोकुल

चौरासी खंभा मंदिर, गोकुल

भगवान श्रीकृष्ण के आदेश पर विश्वकर्मा द्वारा निर्मित यह मंदिर भारत के उत्तरप्रदेश प्रांत के मथुरा जिले के गोकुल नगर में नंदा टीला नाम की एक छोटी पहाड़ी पर स्थित है। प्रसिद्ध चौरासी खंभा मंदिर (84 Khamba Gokul Dhaam Temple) को नंद भवन, नंद महल जैसे कई नामों से जाना जाता है। इस मंदिर का यह नाम इसलिए पड़ा, क्योंकि ये 84 खंभों पर टिका हुआ है। मंदिर की दीवारें कृष्ण की तस्वीरों और पेंटिंग से भरी पड़ी हैं और कृष्ण के बचपन से जुड़े कई दृश्य इन दीवारों पर देखे जा सकते हैं। इस मंदिर को एक दरबार के रूप में उपयोग किया जाता था, जहां राजा अपने मंत्रियों और जनता से मिलते थे। यह गोकुल में कृष्ण के बचपन के अतीत के सबसे महत्वपूर्ण पुरातत्व अवशेष हैं।

एक प्रचलित कथानुसार, भगवान श्री कृष्ण अपने माता-पिता को 4 धाम की यात्रा का सुख गोकुल में ही देना चाहते थे, जिसके निमित्त उन्होंने भगवान विश्वकर्मा से उनके घर में 84 खंभे लगाने को कहा। विश्वकर्मा ने बताया, कि इन खभों को कलियुग में कोई गिन नही पाएगा। जो कोई कोशिश करेगा, उसकी गिनती में या तो 1 खंभा कम आएगा या ज्यादा। तब से ये मान्यता चली आ रही है, कि जो जातक इस मंदिर के दर्शन करेगा, उसे चार धाम की यात्रा का फल मिलेगा। मंदिर के 84 खंभे 84 लाख योनियों का भी प्रतीक माने जाते हैं, जिनसे गुजरने के बाद इंसान को मनुष्य रूप मिलता है।

सन् 1018 ई. में महमूद गजनवी ने महावन पर आक्रमण कर चौरासी खंभा (नंद भवन) को नष्ट दिया था। इसके बाद से यह अपने पुराने स्वरूप को प्राप्त नहीं कर सका। मुगलकाल में सन् 1634 ई. में सम्राट शाहजहां ने इसी वन में 4 शेरों का शिकार भी किया था। चौरासी खंभा मंदिर से पूर्व दिशा में कुछ ही दूर यमुना जी के तट पर ब्रह्मांड घाट नाम का रमणीक स्थल है। मान्यतानुसार, यहां श्री कृष्ण ने मिट्टी खाने के बहाने यशोदा को अपने मुख से समग्र ब्रह्मांड के दर्शन कराए थे। यहीं से कुछ दूर लता वल्लरियों के बीच मनोहारी चिंताहरण शिव के दर्शन हैं।

श्रीकृष्ण ने यहीं पूतना, तृणावर्त, शकटासुर नामक असुरों का वध कर उनका उद्धार किया। नन्द भवन के पास नंद की गोशाला में कृष्ण और बलदेव का नामकरण हुआ। यहीं पास में ही घुटनों पर बलराम, कृष्ण चले, यहीं पर मैया यशोदा ने चंचल बाल कृष्ण को ऊखल से बांधा, कृष्ण ने यमलार्जुन का उद्धार किया। यहीं ढ़ाई-तीन वर्ष की अवस्था तक श्री कृष्ण और राम की बालक्रीड़ाएं हुईं। बृहदवन या महावन गोकुल की लीलास्थलियों का ब्रह्मांड पुराण में भी वर्णन किया गया है।