मां भगवती को समर्पित 51 शक्तिपीठों में से एक यह शक्तिपीठ चीन अधिकृत तिब्बत के मानसरोवर तट पर स्थित है। मान्यतानुसार, मानस शक्तिपीठ वह स्थान है जहां माता का दाहिनी हथेली गिरा थी। यहां की शक्ति ‘दाक्षायणी’ तथा भैरव देव ‘अमर’ हैं। जिस कारण इस शक्तिपीठ को दाक्षायणी शक्तिपीठ (Dakshayani Shakti Peeth) भी कहते हैं। मनसा देवी को भगवान शिव की मानस पुत्री के रूप में पूजा जाता है। इनका प्रादुर्भाव मस्तक से हुआ है इस कारण इनका नाम मनसा पड़ा। मनसा देवी मुख्यत: सर्पों से आच्छादित तथा कमल पर विराजित हैं 7 नाग उनके रक्षण में सदैव विद्यमान हैं।
मानस शक्तिपीठ (Manasa Shaktipeeth) या कैलाश शक्तिपीठ, मानसरोवर का गौरवपूर्ण वर्णन हिन्दू, बौद्ध, जैन धर्मग्रंथों में मिलता है। वाल्मीकि रामायण के अनुसार यह ब्रह्मा के मन से निर्मित होने के कारण ही इसे ‘मानसरोवर’ कहा गया। यहाँ स्वयं शिव हंस रूप में विहार करते हैं। आदि शक्तिपीठों की संख्या 4 मानी जाती है। कालिकापुराण में शक्तिपीठों की संख्या 26 बताई गई है। शिव चरित्र के अनुसार शक्ति पीठों की संख्या 51 हैं। तंत्र चूड़ामणि, मार्कण्डेय पुराण के अनुसार शक्ति-पीठ 52 हैं। भागवत में शक्तिपीठों की संख्या 108 बताई गई है।
कैलाश मानसरोवर (Kailash Mansarovar) के पास ही राक्षस ताल है, जिसे ‘रावण हृद’ भी कहते हैं। मानसरोवर का जल एक छोटी नदी द्वारा राक्षस ताल तक जाता है। तिब्बती इस नदी को ‘लंगकत्सु’ कहते हैं। जैन-ग्रंथों में अंकित विवरण के अनुसार रावण एक बार ‘अष्टपद’ की यात्रा पर आया और उसने ‘पद्महद’ में स्नान करना चाहा, किंतु देवताओं ने उसे रोक दिया। तब त्रिलोकी विजेता रावण ने एक सरोवर, ‘रावणहृद’ का निर्माण किया और उसमें मानसरोवर की धारा ले आया तथा स्नान किया।
कैलास में मानसरोवर दर्शन की विशेष महिमा है। मान्यता है कि महाराज मानधाता ने मानसरोवर झील की खोज की थी। शास्त्रानुसार, उन्होंने इसी झील के किनारे कई वर्षों तक कठोर तपस्या भी की थी। बौद्ध धर्म के अनुसार, मानसरोवर झील के केंद्र में एक वृक्ष है, जिसके फलों के चिकित्सकीय गुण सभी प्रकार के शारीरिक व मानसिक रोगों का उपचार करने में सक्षम हैं। कैलाश मानसरोवर झील को चीन में Mapang Yongcuo झील के नाम से जाना जाता है।