भगवान शिव को समर्पित यह मंदिर भारत के उड़ीसा प्रांत की राजधानी भुवनेश्वर में बिंदुसागर झील के तट पर स्थित है। भुवनेश्वर का प्राचीन लिंगराज मंदिर भारत के सबसे प्रसिद्ध मंदिरों में गिना जाता है। लिंगराज का अर्थ होता है ‘लिंगम के राजा’, जो यहां भगवान शिव को कहा गया है। पहले यहां भगवान शिव की पूजा कीर्तिवास के रूप में की जाती थी, फिर बाद में उन्हें हरिहर के नाम से पूजा जाने लगा। मान्यतानुसार, भुवनेश्वर नगर का नाम उन्हीं के नाम पर पड़ा। भगवान शिव की पत्नी को यहां भुवनेश्वरी कहा जाता है।
लिंगराज मंदिर (Lingaraj Temple) कलिंग वास्तुशैली का अनुपम उदाहरण है। यह मंदिर करीब ढाई लाख वर्ग फुट के विशाल क्षेत्र में फैला हुआ है। मंदिर की बाहरी संरचना की नक्काशी अविश्वसनीय है। मंदिर की ऊंचाई 180 फीट है। मंदिर मुख्यतः चार भागों में बंटा है – गर्भ गृह, यज्ञ शैलम, भोग मंडप और नाट्यशाला। श्रद्धालु सबसे पहले बिन्दुसरोवर में स्नान करते हैं, उसके बाद क्षेत्रपति अनंत वासुदेव के दर्शन करने जाते हैं। फिर गणेश पूजा के बाद गोपालनी देवी और शिव जी के वाहन नंदी की पूजा कर लिंगराज के दर्शन के लिए मुख्य स्थान में प्रवेश करते हैं।
लिंगराज मंदिर में 8 फीट मोटा और लगभग 1 फीट ऊंचा ग्रेनाइट का स्वयंभू लिंग स्थित है। मान्यता है कि भारत में जो द्वादश ज्योतिर्लिंग हैं, उन सभी का अंश इस शिवलिंग में है, इसीलिए इसे लिंगराज कहा जाता है। इतिहासकारों के मुताबिक वर्तमान मंदिर का निर्माण सोमवंशी राजा ‘जजाति केसरी’ ने 11वीं शताब्दी में कराया था। कुछ इतिहासकारों के मतानुसार, यह मंदिर सातवीं शताब्दी में अस्तित्व में आ गया था, क्योंकि 7वीं सदी के संस्कृत लेखों में इस मंदिर का उल्लेख मिलता है।
मान्यतानुसार, भगवान विष्णु और शिव दोनों इस मंदिर में बसते हैं। यहां शिवलिंग के बीच में चांदी के शालिग्राम भगवान स्थित हैं, मानो भगवान शिव के हृदय में भगवान विष्णु विराजमान हैं। मंदिर में 22 दिनों तक चलने वाला ‘चंदन यात्रा’ त्योहार भी धूमधाम से मनाया जाता है। यहां का महाप्रसादम भी भक्तों के बीच बहुत प्रसिद्ध है। उसे मिट्टी के बर्तनों में पुजारियों द्वारा तैयार किया जाता है। पहले इसका भोग भगवान को लगाया जाता है, फिर भक्तों को बांटा जाता है।