भगवान सूर्य देव को समर्पित यह मंदिर भारत के उड़ीसा प्रांत के पुरी शहर से 35 किलोमीटर दूर कोणार्क नगर में स्थित है। अद्भुत वास्तुकला का धनी यह कोणार्क सूर्य मंदिर भारत के सूर्य मंदिरों में सबसे प्रमुख है। मंदिर की वास्तुकला कुछ इस तरह से है कि सूर्य की पहली किरण भगवान की मूर्ति पर ही पड़ती है। हाल ही में कुछ ऐसा ही प्रयोग अयोध्या में राम मंदिर में देखने को मिला था। इतिहासकारों के अनुसार, कोणार्क मंदिर का निर्माण पूर्वी गंगवंश के राजा प्रथम नृसिंह देव ने साल 1250 में कराया था। राजा नृसिंहदेव का शासन काल 1282 तक रहा।
पौराणिक कथानुसार, श्रीकृष्ण के पुत्र साम्ब ने देवऋषि नारद के साथ अभद्रता की थी। जिसकी वजह से नारद ने साम्ब को श्राप दिया। श्राप के फलस्वरूप साम्ब को कुष्ठ रोग हो गया। रोग के उपचार हेतु कोर्णाक में उन्होंने 12 वर्षों तक सूर्य देव की तपस्या की। सूर्य देव ने प्रसन्न हो कर दर्शन दिये और साम्ब के सारे कष्ट दूर कर दिये। तत्पश्चात साम्ब ने सूर्य को समर्पित एक मंदिर बनवाने का प्रण किया। कहा जाता है कि जब साम्ब चंद्रभागा नदी में स्नान कर रहे थे तो उन्हें सूर्य देव की एक मूर्ति मिली, जिसका निर्माण वास्तु विशेषज्ञ विश्वकर्मा जी ने किया था। बाद में साम्ब ने मित्रवन में सूर्य मन्दिर बनवाया।
कोणार्क सूर्य मंदिर (Konark Sun Temple) का निर्माण कलिंग स्थापत्य शैली के तहत किया गया था। यह मंदिर बलुआ पत्थर और ग्रेनाइट से बना है। मंदिर में मौजूद रथ में 12 जोड़ी पहिये हैं जो 24 घंटों को दर्शाते हैं। यह भी माना जाता है कि 12 पहिये साल के 12 महीनों का प्रतीक हैं। 7 घोड़े हैं जो 7 दिनों को दर्शाते हैं। इनमें से चार पहिये अभी भी समय बताने के लिए धूपघड़ी के रूप में उपयोग किए जाते हैं। मंदिर में 8 ताड़ियाँ भी हैं जो दिन के 8 प्रहर का प्रतिनिधित्व करती हैं। 1984 में UNESCO ने इसे विश्व धरोहर स्थल में शामिल किया।