माँ भगवती को समर्पित 51 शक्तिपीठों में से एक देवी का यह शक्ति पीठ भारत के उत्तर प्रदेश प्रांत के वृन्दावन में स्थित है। मान्यतानुसार, यहां माता सती के केश गिरे थे, इसका प्रमाण शास्त्रों में मिलता है। इस मंदिर को उमा शक्तिपीठ के नाम से भी जाना जाता है। नवरात्र के मौके पर देश-विदेश से लाखों भक्त माता के दर्शन करने के लिए यहां आते हैं। बताया जाता है कि राधारानी ने भी श्रीकृष्ण को पाने के लिए इस शक्तिपीठ की पूजा की थी। तब से आज तक यहां कुंवारे लड़के और लड़कियां नवरात्र के मौके पर मनचाहा वर और वधु प्राप्त करने के लिए माता का आशीर्वाद पाने के लिए आते हैं। मान्यता है जो भी भक्त सच्चे मन से माता की पूजा करता है, उसकी मनोकामना जल्द पूरी होती है।
वृंदावन धाम में स्थित कात्यायनी शक्तिपीठ (Katyayani Shaktipeeth, Vrindavan) का पुराना कोई इतिहास ज्ञात नहीं है। 1923 में, स्वामी केशवानंद महाराज ने इस मंदिर का निर्माण कराया। स्वामी केशवानंद ने एक धर्म परायण ब्राह्मण परिवार में जन्म लेकर अध्यात्म की खोज में कम उम्र में ही अपना घर छोड़ दिया और सबसे पहले वाराणसी गए। अपने गुरु महान संत श्यामाचरण लाहिड़ी महाराज से दीक्षा ली और के आदेश के अनुसार, स्वामी केशवानंद हिमालय चले गए। हिमालय जाकर वह अन्य आचार्यों से मिले और अपने आध्यात्मिक जीवन के 33 साल बिताए। इस दौरान उन्हें एक दिव्य अनुभव हुआ जिसमें उन्हें वृंदावन जाकर देवी के शक्तिपीठ की स्थापना करने का आदेश मिला।
दिव्य अनुभव के बाद स्वामी केशवानंद हिमालय से वृंदावन आए और अपने योग बल से उन्होंने उस शक्तिपीठ को पहचान लिया, जहां माता सती के केश गिरे थे। इसके बाद उन्होंने यहां कात्यायनी शक्ति पीठ की स्थापना की। स्वामी केशवानंद जीवन भर इसी मंदिर के पास में एक आश्रम में रहे और माता की पूजा की सन 1942 में उन्होंने महासमाधि ली। उसके बाद उनके शिष्य स्वामी सत्यानंद जी ने मंदिर के प्रशासन का कार्यभार संभाला। अभी वर्तमान में स्वामी विद्यानंद जी महाराज मंदिर का प्रशासन संभाल रहे हैं।
राधारानी ने गोपियों के साथ भगवान कृष्ण को पति रूप में पाने के लिए कात्यायनी पीठ की पूजा की थी। माता ने उन्हें वरदान तो दे दिया लेकिन भगवान एक और गोपियां अनेक, ऐसा संभव नहीं था। इसलिए भगवान कृष्ण ने वरदान को साक्षात करने के लिए महारास किया। स्थानीय मान्यताओं के अनुसार, भगवान श्रीकृष्ण ने कंस का वध करने से पहले यमुना किनारे माता कात्यायनी को कुलदेवी मानकर बालू से मां की प्रतिमा बनाई थी। उस प्रतिमा की पूजा करने के बाद भगवान श्रीकृष्ण ने कंस का वध किया था।