प्रथम पूज्य भगवान गणेश को समर्पित यह अनोखा मंदिर भारत के उत्तरप्रदेश प्रांत के कानपुर शहर के घंटाघर क्षेत्र में स्थित है। कानपुर के घंटाघर स्थित इस ऐतिहासिक गणेश मंदिर की कहानी बेहद क्रांतिकारी है। यह मंदिर अंग्रेजों के खिलाफ हुई क्रांति का भी गवाह है। मंदिर के नजदीक मस्जिद होने के कारण ब्रिटिश हुकूमत ने इस मंदिर के निर्माण पर रोक लगा दी थी। फिर इस मंदिर का निर्माण छिपकर मकान रूप में कराया गया। मंदिर का भूमि पूजन बाल गंगाधर तिलक ने 1918 में किया था। 1918 में ही निर्माण प्रारंभ हुआ और 1923 में जाकर मंदिर बनकर तैयार हुआ।
कानपुर शहर के घंटाघर स्थित श्री सिद्धिविनायक गणेश मंदिर (Shri Siddhivinayak Ganesh Temple) में घुसते ही विशाल गणेश जी की मूर्ति है जो अपने आप में बेहद आकर्षक है। इस मंदिर में गणेश भगवान अपने पुत्र शुभ-लाभ और परिवार रिद्धि-सिद्धि के साथ मौजूद हैं। वर्ष 1918 में बाल गंगाधर तिलक के नींव रखने के बाद इस मंदिर का निर्माण शुरू हुआ। दरअसल, 1908 में रामचरण और लाल ठाकुर प्रसाद ने गणेश मंदिर निर्माण की इच्छा बाल गंगाधर तिलक के सामने जाहिर की थी। जब वर्ष 1918 में बाल गंगाधर तिलक कानपुर आए तब उन्होंने इस मंदिर का भूमि पूजन किया और उसी वर्ष इस मंदिर का निर्माण शुरू हुआ। इसके बाद इस मंदिर को मकान के रूप में वर्ष 1923 में तैयार किया गया।
कानपुर के घंटाघर स्थित यह गणेश मंदिर देखने में बिल्कुल एक मकान की तरह प्रतीत होता है। इस मंदिर में बाहर से ही गणेश जी की एक विशालकाय मूर्ति के दर्शन हो जाते हैं। यह मूर्ति दिखने में बेहद आकर्षक और बहुत सुंदर है। मंदिर में प्रवेश करते ही गणेश जी के वाहन मूषक राजा विराजमान हैं। उनका आशीर्वाद लेकर ही मंदिर में भक्त प्रवेश करते हैं। भक्तों का दावा है कि पूरे भारत में यह एक ऐसा मंदिर है जिसका स्वरूप घर जैसा है। इस तीन मंजिला खंड में यहां हर एक खंड में गणेश जी का एक भिन्न स्वरूप विराजमान है।
कुछ समय पहले ही यहां पर नवग्रह की भी स्थापना की गई है। इसके साथ यहां पर भगवान गणेश के 10 स्वरूप एक साथ मौजूद है। मंदिर में आने वाले भक्तों को 10 सिर वाले गणपति के भी दर्शन होते हैं। मान्यता है कि जो भी भक्त यहां पर आकर 40 दिन तक गणेश जी की सच्चे मन से पूजा अर्चना करता है उसकी गजानन महाराज सभी मनोकामनाएं पूर्ण करते हैं। गणेश महोत्सव के दौरान इस मंदिर भक्तों का तांता लगा रहता है।