भगवान विष्णु के 8वें अवतार श्रीकृष्ण को समर्पित यह मंदिर गुजरात प्रांत के द्वारका जिले में स्थित है। इस मंदिर का निर्माण आज से लगभग 2500 वर्ष पहले श्रीकृष्ण के पौते ‘वज्रनाभ’ ने कराया था। ये मंदिर आदि शंकराचार्य द्वारा स्थापित देश के 4 धामों में से एक है। यहां पर भगवान श्रीकृष्ण की पूजा द्वारकाधीश के रुप में होती है। इसका अर्थ है द्वारका का राजा। द्वापर युग में ये स्थान भगवान कृष्ण की राजधानी था। इस मंदिर की इमारत 5 मंजिला है। इस मंदिर में ध्वजा पूजन का विशेष महत्व है।
पुराणों के अनुसार लगभग 5200 साल पहले जब भगवान श्रीकृष्ण के आदेश पर विश्वकर्मा ने द्वारका नगरी बसाई थी तो जिस स्थान पर श्रीकृष्ण का निजी महल यानी हरि गृह था, वहीं पर द्वारकाधीश मंदिर का निर्माण हुआ। मंदिर के गर्भगृह में भगवान श्रीकृष्ण की श्यामवर्णी चतुर्भुज प्रतिमा है। जो चांदी के सिंहासन पर विराजमान है। ये अपने हाथों में शंख, चक्र, गदा और कमल धारण किए हुए हैं। पुरातत्वविदों के अनुसार, यह मंदिर करीब 2,000 से 2200 साल पुराना है। ऐसा माना जाता है कि करीब पच्चीस सौ साल पहले द्वारकाधीश मंदिर का निर्माण भगवान श्री कृष्ण के पोते वज्रनाभ ने करवाया था। बाद में इस मंदिर का जीर्णोद्धार और विस्तार किया गया।
इतिहासकारों के अनुसार, मंदिर का जो वर्तमान स्वरूप है उसे 16वीं सदी के आस-पास का बताया जाता है। इस मंदिर को जागृत मंदिर के नाम से भी जाना जाता है। इस मंदिर की दिशा, जगह और बनावट वास्तुशास्त्र बहुत अच्छे उदाहरणों में से एक है। इस मंदिर की खास बात ये हैं कि शिखर पर लगी ध्वजा हमेशा पश्चिम से पूर्व दिशा की ओर लहराती है। इसका निर्माण चूना-पत्थर से किया गया है। इसलिए इसकी खूबसूरती आज भी बनी हुई है। ये मंदिर 72 स्तंभों पर टीका हुआ है और इसके शिखर की उंचाई 235 मीटर है। इस मंदिर की बनावट से पैदा होने वाली सकारात्मक उर्जा से हर तरह की शांति मिलती है। इसके प्रभाव से श्रद्धालुओं के मन में सकारात्मक विचार आते हैं और बुरे विचार दूर हो जाते हैं। इस मंदिर का गर्भगृह और मंडप का स्थान भी वास्तु को ध्यान में रखकर बनाया गया है। जिसके प्रभाव से वहां जाने वाले लोग सम्मोहित हो जाते हैं।
5 मंजिला इस मंदिर के शिखर पर लहराती 84 फीट धर्मध्वजा को देखकर दूर से ही श्रीकृष्ण के भक्त उनके सामने अपना सिर झुका लेते हैं। मंदिर के ऊपर लगी ध्वजा पर सूर्य और चंद्रमा का प्रतीक चिह्न बना है। सूर्य-चंद्र श्रीकृष्ण के प्रतीक माने जाते हैं इसलिए उनके मंदिर के शिखर पर सूर्य-चंद्र के चिह्न वाले ध्वज लहराते हैं। द्वारकाधीशजी मंदिर पर लगी ध्वजा को दिन में 3 बार सुबह, दोपहर और शाम को बदला जाता है। मंदिर पर ध्वजा चढ़ाने-उतारने का अधिकार अबोटी ब्राह्मणों को प्राप्त है। हर बार अलग-अलग रंग का ध्वज मंदिर के ऊपर लगाया जाता है।