प्रभु श्रीराम के अनन्य भक्त हनुमान जी को समर्पित 1600 वर्ष पुराना यह मंदिर भारत के तमिलनाडु प्रांत के नमक्कल शहर में स्थित है। नमक्कल जिले में पहाड़ियों के बीच मौजूद आंजनेयार मंदिर दुनियां के सबसे प्राचीन हनुमान मंदिरों में से एक है। करीब 5वीं शताब्दी के दौरान बनाए गए इस मंदिर में भगवान हनुमान की 18 फीट ऊंची प्रतिमा हाथ जोड़े खड़ी है। प्रतिमा को काले ग्रेनाइट की एक चट्टान को काटकर एक ही पत्थर से बनाया गया था। खास बात ये है कि इस मंदिर में भगवान हनुमान श्रीराम नहीं बल्कि विष्णु के ही अवतार भगवान नृसिंह की सेवा में खड़े हैं।
नमक्कल श्री अंजनेयार मंदिर (Namakkal Sree Anjaneyar Temple) का नाता भगवान विष्णु, लक्ष्मी और हनुमान से है। मंदिर के सामने 450 फीट दूरी पर एक पहाड़ी है, इसे नृसिंह हिल कहा जाता है। इस पहाड़ी पर भगवान नृसिंह का निवास माना जाता है। मान्यता है कि इस पहाड़ी में देवी लक्ष्मी को भगवान विष्णु ने नृसिंह रूप में दर्शन दिए थे। इस पहाड़ी की रक्षा के लिए हनुमान जी भी यहीं बस गए। उनकी ही सेवा में यहां आंजनेयार (अंजनी पुत्र) के रूप में खड़े हैं। मंदिर पूरी तरह द्रविड़ वास्तु कला के आधार पर बनाया गया है। गर्भगृह में हनुमान जी की 18 फीट की प्रतिमा स्थापित है। प्रतिमा के पीछे दो बड़े खंभों के जरिए एक मचान सी बनाई गई है, जिस पर चढ़कर भगवान हनुमान का अभिषेक और श्रंगार किया जाता है।
एक प्रचलित कथानुसार, भक्त प्रह्लाद की रक्षा के लिए भगवान विष्णु ने नृसिंह का रूप धारण किया। हिरण्यकशिपु का वध करने के बाद भगवान विष्णु नृसिंह रूप में लंबे समय तक दंडकारण्य के जंगलों में अपने गुस्से को शांत करने के लिए विचरते रहे। इसी बीच एक बार देवी लक्ष्मी ने भगवान हनुमान से प्रार्थना की कि वे भगवान विष्णु को नृसिंह रूप में दर्शन देने की प्रार्थना करें। भगवान हनुमान ने सालिग्राम रूपी भगवान की प्रतिमा को लक्ष्मीजी के हाथों में देकर कहा कि आप इसे संभालिए, मैं कुछ ही देर में लौटता हूं। लक्ष्मीजी ने उस सालिग्राम प्रतिमा को उस जगह रख दिया जहां आज नृंसिह पर्वत है। सालिग्राम का आकार स्वतः ही बढ़ने लगा और उसने एक पर्वत का आकार ले लिया। जब तक हनुमान लौटे तब तक सालिग्राम स्वयं ही पर्वत बन चुका था। इसी में भगवान नृसिंह ने देवी लक्ष्मी और हनुमान को दर्शन दिए। तभी से भगवान हनुमान इस पर्वत की सुरक्षा और सेवा के लिए यहां निवास करने लगे।