शक्ति पीठ – पूर्णागिरी देवी मंदिर: मां भगवती को समर्पित यह शक्तिपीठ उत्तराखंड प्रांत के चंपावत जिले में भारत और नेपाल की सीमा पर काली नदी के तट पर स्थित है। पूर्णागिरि सिद्ध पीठ मां भगवती की 108 सिद्ध पीठों में भी गिनी जाती है। जिले के प्रवेशद्वार टनकपुर से 20 किलोमीटर दूर यह शक्तिपीठ अन्नपूर्णा चोटी के शिखर में समुद्र तल से 3000 मीटर की उंचाई पर है। पौराणिक मान्यतानुसार, इस अन्नपूर्णा पर्वत पर माता सती की नाभि गिरी थी। तब से देश की चारों दिशाओं में स्थित मल्लिका गिरि, कालिका गिरि, हमला गिरि व पूर्णागिरि में इस पुण्य पर्वत स्थल पूर्णागिरि को सर्वोच्च स्थान प्राप्त हुआ।
चैत्र नवरात्रि में मां अन्नपूर्णा के दर्शन का विशेष महत्व है। यहां चैत्र नवरात्रि से जेष्ठ मास की पूर्णिमा तक 90 दिन का मेला भी लगता हैं। इस मेले में उत्तराखंड के अलावा नेपाल और उत्तर प्रदेश के पीलीभीत, बरेली, लखनऊ और पूर्वांचल के लोग बड़ी तादाद में भाग लेने आते हैं। मां के पुण्य दर्शनों से सभी भक्तों की मन्नतें पूरी होती हैं। जाने- माने वन्य जीव प्रेमी जिम कार्बेट ने 1927 में क्षेत्र की अपनी यात्रा के दौरान मां पूर्णागिरि के प्रकाश पुंजों को देखकर इस देवी शक्ति के चमत्कार का अपने लेखों में उल्लेख किया है।
मां पूर्णागिरि मंदिर की मान्यता है कि यहां पर भक्त लाल-पीले कपड़े को चीरकर आस्था और श्रद्धा के साथ मां के दरबार में बांधते हैं और इसे आस्था का चिरा कहा जाता है। वे मनोकामना पूर्ण होने पर श्रद्धालु मां पूर्णागिरि मंदिर के दर्शन व आभार प्रकट करने और चीर की गांठ खोलने आते हैं। मां के दरबार में प्रसाद चढ़ा के मत्था टेकते हैं। चैत्र मास से जेष्ठ मास तक चलने वाले 90 दिन के मेले में श्रद्धालु मीलों पैदल यात्रा करके मां पूर्णागिरि के दरबार में झंडे चढ़ाने आते हैं।