शक्तिपीठ – कालीघाट कालीमंदिर: माँ भगवती को समर्पित 52 शक्तिपीठों में से एक यह शक्ति पीठ भारत के पश्चिम बंगाल प्रांत के कोलकाता शहर में स्थित है। पौराणिक मान्यतानुसार, शक्तिपीठ ऐसे स्थान हैं, जहाँ माता सती की मृत देह के अंग गिरे थे। ये स्थान पूरे भारत समेत पड़ोसी देशों जैसे पाकिस्तान, बांग्लादेश और नेपाल में भी स्थित हैं। कोलकाता के कालीघाट मंदिर में माता सती के दाहिने पैर का अँगूठा गिरा था। तब से ही यह स्थान शक्तिपीठ माना जाता है। वर्तमान में उपस्थित मंदिर लगभग 200 साल पुराना है। सन् 1809 में यह मंदिर कोलकाता के सबर्ण रॉय चौधरी नामक धनी व्यापारी के सहयोग से पूरा हुआ। इसके अलावा 15वीं और 17वीं शताब्दी की कुछ रचनाओं में भी इस मंदिर का उल्लेख मिलता है।
कालीघाट मंदिर में गुप्त वंश के कुछ सिक्के मिलने के बाद यह पता चलता है कि गुप्त काल के दौरान भी इस मंदिर में श्रद्धालुओं का आना-जाना बना हुआ था। कोलकाता के कालीघाट मंदिर के बारे में सबसे खास बात यह है कि पहले यह मंदिर हुगली (जिसे भागीरथी भी कहा जाता था) के किनारे स्थित था। लेकिन समय के साथ भागीरथी, मंदिर से दूर होती चली गई। अब यह मंदिर आदिगंगा नाम की नहर के किनारे पर स्थित है, जो अंततः हुगली नदी से जाकर मिलती है। मोनोशा ताल, जोर बांग्ला, नट मंदिर, हरकथ ताल और राधा कृष्ण मंदिर भी कालीघाट मंदिर का ही हिस्सा हैं। मंदिर परिसर में ही कुंडुपुकुर स्थित है, जो एक जलकुंड है। माता सती का दाहिना अँगूठा इसी कुंड में से मिला था।
मंदिर के गर्भगृह में स्थापित माँ काली की प्रतिमा अद्भुत और अद्वितीय है। इस प्रतिमा का निर्माण दो संतों आत्माराम ब्रह्मचारी और ब्रह्मानंद गिरी ने किया था। पत्थर को तराश कर बनाई गई इस माँ काली की इस प्रतिमा की तीन बड़ी आँखें हैं, साथ ही चार स्वर्ण भुजाएँ भी हैं। इसके अलावा माँ काली के हमेशा से पूज्य स्वरूप के अनुसार प्रतिमा की जीभ भी बाहर निकली हुई है, जो सोने की है। कालीघाट मंदिर में दुर्गा पूजा उत्सव बड़े ही धूमधाम से मनाया जाता है। नवरात्रि में इस मंदिर का महत्व और भी बढ़ जाता है। देश के कोने-कोने से आने वाले श्रद्धालु नवरात्रि के दौरान घंटों लाइनों में लगकर माँ काली के दर्शन करते हैं। मंगलवार और शानिवार के साथ अष्टमी को कालीघाट मंदिर में विशेष पूजा की जाती है।