भगवान शिव को समर्पित यह मंदिर उत्तराखंड प्रांत के हरिद्वार के कनखल में स्थित है। दक्षेश्वर महादेव मंदिर अपने आप में अद्भुत और अलौकिक है। इस मंदिर में शिवलिंग धरती लोक के साथ पाताल लोक में भी स्थित है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, राजा दक्ष के आग्रह पर महादेव ने कहा था कि इस जगह भगवान शिव को दक्षेश्वर महादेव के नाम से पूजा जाएगा और सावन का पूरा महीना भोलेनाथ कनखल स्थित दक्षेश्वर में ही वास करेंगे।
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, दक्ष प्रजापति ने एक यज्ञ का आयोजन किया था। इस आयोजन में राजा दक्ष ने सभी देवी-देवताओं, ऋषियों और संतों को आमंत्रित किया था, लेकिन इस यज्ञ में राजा दक्ष ने महादेव यानी भगवान शंकर को आमंत्रण नहीं भेजा था। यज्ञ की कथा में राजा दक्ष ने भगवान शिव का बहुत अपमान किया था जिसके बाद देवी सती ने यज्ञ में कूदकर अपने प्राण दे दिए थे। जिसके बाद भगवान शिव ने क्रोधित होकर अपनी जटाओं से वीरभद्र को पैदा किया था।
भगवान शिव ने वीरभद्र को राजा दक्ष का सिर काटकर यज्ञ को ध्वस्त करने का आदेश दिया था। भगवान विष्णु, ब्रह्मा और देवी-देवताओं ने भगवान शिव को शांत करने का प्रयास किया, लेकिन महादेव का क्रोध शांत नहीं हुआ। उसके बाद सिर कटे राजा दक्ष ने भी भगवान शिव से क्षमा मांगी, तब भगवान शंकर ने राजा दक्ष की माफी स्वीकार कर भगवान विष्णु, ब्रह्मा और देवी-देवताओं के आग्रह पर राजा दक्ष को बकरे का सिर लगाया था।
राजा दक्ष के आग्रह पर भगवान शिव ने कहा था कि यहां दक्षेश्वर महादेव के नाम से गंगाजल चढ़ाने व पूजा-अर्चना करने से सभी मनोकामनाएं पूरी होंगी। वो सावन के पूरे माह कनखल दक्षेश्वर महादेव मंदिर में ही वास करेंगे। अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष बताते हैं कि दक्षेश्वर महादेव मंदिर (Shree Daksheshwar Mahadev – Daksh Prajapati Temple) का शिवलिंग धरती लोक के साथ पाताल लोक में भी स्थित है। विश्व में दक्षेश्वर महादेव शिवलिंग एकमात्र ऐसा शिवलिंग है, जो आकाशमुखी नहीं बल्कि पातालमुखी है। वहीं, उन्होंने बताया कि भगवान शिव दुनिया के सबसे पहले सर्जन थे, जिन्होंने सबसे पहले राजा दक्ष को बकरे का सिर लगाया था।