प्रभु श्रीराम के अनन्य भक्त हनुमानजी को समर्पित त्रेतायुग का यह मंदिर भारत के उत्तर प्रदेश प्रांत की राजधानी लखनऊ के अलीगंज क्षेत्र में स्थित है। राजधानी लखनऊ को नवाबों के शहर के नाम के अलावा लखन पुरी या लक्ष्मण पूरी भी कहते हैं। लखनऊ को हिन्दू-मुस्लिम सभ्यता के प्रतीक के रूप में जाना जाता है। मान्यतानुसार, अलीगंज स्थित हनुमान मंदिर से हिन्दू और मुसलमान दोनों धर्मों के लोगों की आस्था जुड़ी है। मंदिर की स्थापना को लेकर कई मतों में से एक मत के अनुसार, अवध के छठवें नवाब सआदत अली खान की मां और शुजाउद्दौला की बेगम और दिल्ली के मुगलिया खानदान की बेटी आलिया बेगम ने इस मंदिर का जीर्णोद्धार कराया था। मान्यता है कि हनुमान जी के इस मंदिर में सच्चे मन से मांगी गई हर मुराद पूरी होती है।
पुराना हनुमान मंदिर (Purana Hanuman Temple) का इतिहास त्रेतायुग से जुड़ा हुआ है। मान्यता के मुताबिक, प्रभु श्रीराम के छोटे भाई लक्ष्मण जी माता सीता जी को कानपुर के पास बिठूर में छोड़ने गए थे। जाते समय रास्ते में लखनऊ के महल में विश्राम करने के लिए रुके थे लेकिन माता सीता ने ये कहकर वहां रुकने से मना कर दिया कि भगवान राम ने वनवास दिया है, वह महल में नहीं रुकेंगी। इसके बाद माता सीता एक एकांत जगह रुकी थीं। वो एकांत जगह अलीगंज ही थी। उनकी रक्षा के लिए हनुमान जी रात भर पहरा दिया था। तभी से इस स्थान का नाम हनुमान बाड़ी पड़ गया और वहां हनुमान जी की पूजा होने लगी। कालांतर में इस स्थान का नाम इस्लाम बाड़ी हो गया।
इतिहासकारों के अनुसार, शुजाउद्दौला की बेगम छतर कुंवर हिंदू थीं। उन्हें आलिया बेगम भी कहा जाता था। उनके नाम पर ही इस इलाके का नाम अलीगंज पड़ा था। जानकारों की मानें तो हीवेट पॉलिटेक्निक के पास इस्लाम बाड़ी के नाम से एक टीला हुआ करता था। उस टीले में एक मूर्ति थी, जिसे मुसलमान इस्लाम बाड़ी वाले बाबा के नाम से जानते थे। आलिया बेगम के संतान नहीं होने से वो बहुत परेशान रहती थीं। उनसे किसी ने इस्लाम बाड़ी वाले बाबा के यहां अर्जी लगाने के लिए कहा। बेगम ने वहां जाकर अपनी अर्जी लगाई, जिसके बाद उनकी मनोकामना पूरी हो गई। इसी बीच आलिया बेगम को सपने में हनुमान जी ने दर्शन दिए। हनुमान जी ने बेगम को बताया कि उस जगह पर मेरी प्रतिमा दबी हुई है। जब उस जगह की खुदाई कराई गई तो हकीकत में हनुमान जी की प्रतिमा निकली।
वहीं, खुदाई में निकली हनुमान जी की प्रतिमा को हाथी पर लादकर इमामबाड़े के पास स्थापना के लिए ले जाया जा रहा था, लेकिन प्रतिमा का वजन भारी होने के कारण हाथी थोड़ी दूर जाकर रुक गया। तमाम प्रयासों के बाद भी हाथी आगे नहीं बढ़ पाया। इसे ईश्वर का संदेश मानकर उसी जगह पर मूर्ति की स्थापना करा दी गई थी। बताया जाता है कि बेगम आलिया की बेटी का जन्म मंगलवार के दिन हुआ था। इसी वजह से सआदत अली खां को मंगलू नवाब भी कहा जाता है। बेटी होने के बाद बेगम आलिया ने इस मंदिर का जीर्णोद्धार कराया और चांद चढ़ाया था। तब से मंदिर के शिखर पर चांद विराजमान है।
अलीगंज का पुराना हनुमान मंदिर (Aliganj ka Purana Hanuman Mandir) के गुंबद के ऊपर स्थित चांद, अवध की गंगा जमुनी तहजीब और सदियों से चली आ रही संस्कृति का सच्चा प्रतीक है। बताया जाता है कि बेगम आलिया की मन्नत पूरी होने के बाद ज्येष्ठ मास के मंगल को भंडारा भी कराया था, तभी से ज्येष्ठ माह के सभी मंगलवार को भंडारा होता आ रहा है। अब राजधानी लखनऊ समेत अन्य जिलों में भी ज्येष्ठ के मंगलवार को भंडारे का आयोजन होता है। इसी महीने में अकाल भी पड़ा था। उसके बाद इस भंडारे को और विस्तार मिल गया। अलीगंज के पुराने हनुमान मंदिर के सामने गुरुद्वारा है। इसके अगल-बगल में मस्जिद और चर्च है।