श्री दूधेश्वरनाथ महादेव मंदिर: भगवान शिव को समर्पित यह मंदिर भारत के उत्तरप्रदेश प्रांत के गाजियाबाद शहर में स्थित है। मान्यतानुसार, इसी स्थान पर लंकापति रावण के पिता ऋषि विश्रवा ने कठोर तप कर भगवान शिव को प्रसन्न किया था। इस मंदिर का वर्णन पुराणों में हिरण्यगर्भ ज्योतिर्लिंग के तौर पर किया गया है। यहीं से हरनंदी या हिरण्यदा नदी के प्रवाहित होने का जिक्र है, जो अब हिंडन नदी के नाम से जानी जाती है। पौराणिक मान्यतानुसार, रावण ने यहां पर खुद भगवान शिव की पूजा-अर्चना की थी। कालांतर में हुई कुछ घटनाओं और दिव्य अनुभवों के बाद हिरण्यगर्भ ज्योतिर्लिंग को दूधेश्वर महादेव मंदिर कहा जाने लगा। दूधेश्वरनाथ मंदिर को सिद्धपीठ मंदिर माना जाता है। महाशिवरात्रि पर यहां पर लाखों भक्तों की भीड़ उमड़ती है।
मंदिर के लिखित इतिहास के अनुसार दूधेश्वरनाथ शिवलिंग (Dudheshwarnath Jyotirling) का प्राकट्य 3 नवंबर 1454 को माना जाता है, लेकिन कई इतिहासकारों ने इसकी प्राचीनता और पौराणिकता को सिद्ध करते हुए इसे त्रेतायुग का बताया है। इतिहासकारों के अनुसार, दूधेश्वर महादेव मंदिर की स्थापना स्वयं लंकापति रावण के पिता विश्रवा ऋषि ने की थी। मुगलकाल के दौरान अन्य मंदिरों की तरह ही इस दूधेश्वरनाथ शिव मंदिर को भी नष्ट कर दिया गया था। साथ ही मंदिर से जुड़े साक्ष्यों को मिटा दिया गया था, ताकि हिन्दू अनुयाई यहां फिर से पूजा अर्चना न कर सकें।
प्रचलित कथानुसार, कई वर्षों बाद एक चमत्कार हुआ। कैला नामक गांव की गायें जब यहां चरने आती थीं तो एक टीले के ऊपर उनके स्तनों से अपने आप दूध गिरने लगता था। जब उन गायों को शाम को दुहा जाता था तो वो दूध नहीं देतीं थीं। सारा शक चरवाहों पर गया। गाय मालिकों को लगता था कि चरवाहे ही दूध चुरा रहे हैं। इस शंका के समाधान के लिए गांव वालों ने छिपकर चरवाहों को गाय चराते देखा। जैसे ही गाय उस टीले से गुजरतीं तो खुदबखुद स्तनों से दूध गिरने लगता। उसी समय एक सिद्ध पुरुष को स्वप्न में भगवान शिव ने दर्शन देकर इसी स्थान पर अपनी उपस्थिति की बात कही। सिद्ध पुरुष और गांव वालों के कहने पर टीले की खुदाई करवाने का निश्चय किया। जब टीले की खुदाई की गई तो वहां पर शिवलिंग मिला। गायों के दूध से अभिषेक करने की वजह से इस प्राचीन शिव मंदिर का नाम दुग्धेश्वरनाथ रख दिया गया। दूधेश्वरनाथ मंदिर का यह शिवलिंग एक स्वयंभू दिव्य शिवलिंग माना जाता है।
श्री दूधेश्वरनाथ मंदिर (Shri Dudheshwarnath Temple) में लगभग 550 वर्षों से महंत परम्परा प्रचलित है। दूधेश्वरनाथ मंदिर के साथ बहुत से दैवीय चमत्कार, मान्यतायें और एतिहासिक तथ्य जुड़े होने की वजह से यह मंदिर लाखों लोगों की आस्था का केंद्र बना हुआ है। दूधेश्वरनाथ मंदिर में लगभग 550 वर्षों से महंत परम्परा कायम है। वर्तमान में यहां महंत नारायण गिरी जी महाराज मंदिर के सोलहवें पीठाधीश हैं। पहले के सभी पीठाधीशों की समाधियां इस मंदिर के प्रांगण में ही बनी हुई हैं।
इतिहासकारों के अनुसार, वीर छत्रपति शिवाजी महाराज भी इस मंदिर में दर्शन करने आए थे और उन्होंने यहां हवन कुंड और मुख्य द्वार का निर्माण कराया था। यह दोनों चीजें आज भी विद्यमान है। गाजियाबाद के दिल्ली गेट के सामने जस्सीपुरा मोड़ के पास स्थित इस दूधेश्वरनाथ मंदिर तक आसानी से पहुंचा जा सकता है। यहां पर रोजाना हजारों भक्तों की भीड़ उमड़ती है। महाशिवरात्रि और सावन माह में यहां आने वाले भक्तों की संख्या लाखों में पहुंच जाती है। शिव भक्त हरिद्वार से गंगाजल लाकर भगवान शिव का अभिषेक करते हैं। महाशिवरात्रि पर मंदिर प्रांगण में खास आयोजन होते हैं।