शक्तिपीठ – ज्वाला देवी मंदिर: मां भगवती दुर्गा को समर्पित यह शक्तिपीठ भारत के हिमाचल प्रदेश की कांगड़ा घाटी के दक्षिण में 30 किमी. और धर्मशाला से 56 किमी. की दूरी पर स्थित है। मां ज्वाला देवी मंदिर मां दुर्गा के 51 शक्तिपीठों में से एक हैं। यह मंदिर काफी प्रसिद्ध है। यह मंदिर भी शिव और शक्ति से जुड़ा है। जब भगवान विष्णु ने अपनी चक्र से देवी सती के शरीर को 51 भागों में बांट दिया। जो अंग जहां पर गिरा वहीं पर शक्तिपीठ बन गया। मान्यताओं के अनुसार, इस स्थान पर माता सती की जीभ गिरी थी। इसलिए इसे ज्वाला जी के नाम से जाना जाता है। इसे जोता वाली और नगरकोट के नाम से भी जाना जाता है।
ज्वाला देवी मंदिर में सदियों से बिना तेल बाती के प्राकृतिक रूप से नौ ज्वालाएं जल रही हैं। नौ ज्वालाओं में प्रमुख ज्वाला जो चांदी के जाला के बीच में हैं उसे महालाकी कहते हैं। बाकी आठ, अन्नपूर्णा, चण्डी, हिंगलाज, विध्यवासिनी, महालक्ष्मी, सरस्वती, अम्बिका, और अंजी देवी ज्वाला मंदिर में निवास करती हैं। ज्वाला देवी शक्तिपीठ के पास माता ज्वाला के अलावा एक अन्य चमत्कार कुंड हैं जिसे गोरख डिब्बी के नाम से जाना जाता है। यहां कुंड के पास आकर आपको ऐसा लगेगा की कुंड की पानी बहुत गरम खौलता हुआ है। लेकिन, जब आप पानी का स्पर्श करेंगे तो आपको ऐसा प्रतीत होगा की कुंड का पानी ठंडा है।
धार्मिक कथानुसार, भक्त गोरखनाथ यहां माता की आराधना किया करते थे। वह माता के परम भक्त थे और पूरी सच्ची श्रद्धा के साथ उनकी उपासना करते थे। एक बार गोरखनाथ को भूख लगी और उसने माता से कहा कि आप आग जलाकर पानी गर्म करें, मैं भिक्षा मांगकर लाता हूं। माता ने आग जला ली। बहुत समय बीत गया लेकिन, गोरखनाथ भिक्षा लेने नहीं पहुंचे। कहा जाता है कि तभी से माता अग्नि जलाकर गोरखनाथ की प्रतीक्षा कर रही हैं। ऐसी मान्यता है कि सतयुग आने पर ही गोरखनाथ लौटकर आएंगे। तब तक यह ज्वाला इसी तरह जलती रहेगी।
अन्य कथा के अनुसार, मुगल बादशाह अकबर ने ज्वाला देवी की शक्तिपीठ में लगातार जल रही ज्वाला को बुझाने का प्रयास किया था। लेकिन, वह कामयाब नहीं हो सका। उसने अपनी पूरी सेना बुलाकर ज्वाला की आग बुझाने का प्रयास किया लेकिन, कामयाब नहीं हुआ। जब अकबर को ज्वाला देवी की शक्ति का आभास हुआ तो उसने मां ज्वाला से क्षमा मांगते हुए देवी को सोने का क्षत्र चढ़ाया।